माँ दुर्गा के नौ रूपों के पूजन का पर्व है नवरात्रि
(नवरात्रि उत्सव पर विशेष)
आश्विन मास में शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ
होकर नौ दिन तक चलने वाला नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कही जाती है। शारदीय नवरात्रि
में दिन छोटे होने लगते हैं और रात्रि बड़ी। कहा जाता है कि ऋतुओं के परिवर्तन काल
का असर मानव जीवन पर नहीं पड़े इसीलिए साधना के बहाने ऋषि-मुनियों ने इन नौ दिनों
में उपवास का विधान किया था। नवरात्रि का समापन विजयादशमी के साथ होता है।
माँ दुर्गा के नौ रूपों में पहला स्वरूप 'शैलपुत्री' के नाम से विख्यात है।
कहा जाता है कि पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका
नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। दूसरे दिन माँ के
दूसरे स्वरूप 'ब्रह्मचारिणी' की पूजा अर्चना की जाती
है। दुर्गाजी का तीसरा स्वरूप माँ 'चंद्रघंटा' का है। तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व माना गया है।
पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। पांचवां दिन
स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। स्कंदमाता अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की
पूर्ति करती हैं। दुर्गाजी के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी और सातवें स्वरूप का
नाम कालरात्रि है। मान्यता है कि सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा से ब्रह्मांड
की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। दुर्गाजी की आठवें स्वरूप का नाम
महागौरी है। यह मनवांछित फलदायिनी हैं। दुर्गा जी के नौवें स्वरूप का नाम
सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देनेवाली हैं।
नवरात्रि पर्व की धूम देश के हर भाग में अलग-अलग
तरह से देखने को मिलती है जहां उत्तर भारत में मंदिरों में माँ भगवती का पूरे
शृंगार के साथ पूजन किया जाता है वहीं गुजरात और महाराष्ट्र में गरबा का आयोजन
किया जाता है तो बंगाल में मनाया जाने वाला दुर्गोत्सव अलग ही छटा बिखेरता है। माँ
के मंदिरों विशेष रूप से जम्मू के कटरा स्थित माता वैष्णों देवी में तो नवरात्र
में श्रद्धालुओं का तांता ही लग जाता है। शारदीय नवरात्रि के दौरान पूरा बंगाल
दुर्गामय हो जाता है। यहां विभिन्न सोसायटियों और संस्थाओं की ओर से दुर्गा पूजा
के बड़े बड़े और भव्य पंडाल लगाये जाते हैं जोकि समय के साथ-साथ आधुनिक होते जा
रहे हैं। इन पंडालों के माध्यम से धार्मिक के साथ ही सामाजिक संदेश भी दिये जाते
रहे हैं और हर साल सभी पंडालों के लिए एक थीम तय कर दी जाती है जिससे यह
श्रद्धालुओं के लिए और आकर्षक हो जाते हैं।
इस व्रत के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान आदि करके
मंदिर में जाकर माता की पूजा करनी चाहिए या फिर घर पर ही माता की चौकी स्थापित
करनी चाहिए। कन्याओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से लाभदायक बताया गया है। माता की
चौकी को स्थापित करने के दौरान जिन वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है उनमें गंगाजल, रोली, मौली, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, फल, फूल की माला, बिल्वपत्र, चावल, केले का खम्भा, चंदन, घट, नारियल, आम के पत्ते, हल्दी की गांठ, पंचरत्न, लाल वस्त्र, चावल से भरा पात्र, जौ, बताशा, सुगन्धित तेल, सिंदूर, कपूर, पंच सुगन्ध, नैवेद्य, पंचामृत, दूध, दही, मधु, चीनी, गाय का गोबर, दुर्गा जी की मूर्ति, कुमारी पूजन के लिए
वस्त्र, आभूषण तथा श्रृंगार
सामग्री आदि प्रमुख हैं।
कथा सुनने के बाद माता की आरती करें और उसके
बाद देवीसूक्तम का पाठ अवश्य करें। देवीसूक्तम का श्रद्धा व विश्वास से पाठ करने
पर अभीष्ट फल प्राप्त होता है। भगवती दुर्गा ही संपूर्ण विश्व को सत्ता, स्फूर्ति तथा सरसता
प्रदान करती हैं। इन्हीं की शक्ति से देवता बनते हैं, जिनसे विश्व की उत्पत्ति
होती है। इन्हीं की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विश्व का पालन और संहार
करते हैं। दया,
क्षमा, निद्रा, स्मृति, क्षुधा, तृष्णा, तृप्ति, श्रद्धा, भक्ति, धृति, मति, तुष्टि, पुष्टि, शांति, कांति, लज्जा आदि इन्हीं
महाशक्ति की शक्तियां हैं। ये ही गोलोक में श्रीराधा, साकेत में श्रीसीता, श्रीरोदसागर में लक्ष्मी, दक्षकन्या सती, दुर्गितनाशिनी
मेनकापुत्री दुर्गा हैं। ये ही वाणी, विद्या, सरस्वती, सावित्री और गायत्री हैं।
माँ दुर्गा के सभी नौ
रूपों का अलग अलग महत्व है।
शैलपुत्री
वन्दे वांछितलाभाय
चन्द्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां
शैलपुत्रीं यशंस्विनिम।।
माँ दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है।
पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री
कहा गया। यह वृषभ पर आरूढ़ दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में पुष्प कमल धारण
किए हुए हैं। यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्रि पूजन में पहले दिन
इन्हीं का पूजन होता है। प्रथम दिन की पूजा में योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र
में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना शुरू होती है।
ब्रह्मचारिणी
दधाना
करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि
ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
माँ दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरा स्वरूप
ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्मा शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का
अर्थ हुआ तप की चारिणी यानि तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप
पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इसके बाएं हाथ में कमण्डल और दाएं हाथ में
जप की माला रहती है। माँ दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान
करने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि
होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का
मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी
कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
चंद्रघण्टा
पिण्डज प्रवरारूढ़ा
चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं
चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
माँ दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघण्टा
है। नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन व आराधना की जाती है।
इनका स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का
अर्धचन्द्र है। इसी कारण इस देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण
के समान चमकीला है। इनका वाहन सिंह है। हमें चाहिए कि हम मन, वचन, कर्म एवं शरीर से शुद्ध
होकर विधि−विधान के अनुसार, माँ चंद्रघ.टा की शरण लेकर उनकी उपासना व आराधना में तत्पर
हों। इनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी
बन सकते हैं।
कूष्माण्डा
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव
च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां
कूष्माण्डा शुभदास्तुमे।।
माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा
है। अपनी मंद,
हल्की हंसी द्वारा
ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। नवरात्रों में चौथे
दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहज
चक्र में स्थित होता है। अतः पवित्र मन से पूजा−उपासना के कार्य में लगना चाहिए। माँ
की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और
श्रेयस्कर मार्ग है। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त
करके उसे सुख,
समृद्धि और उन्नति की ओर
ले जाती है। अतः अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति चाहने वालों को कूष्माण्डा की उपासना में
हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
स्कन्दमाता
सिंहासनगता नित्यं
पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी
स्कन्दमाता यशस्विनी।।
माँ दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता
कहा जाता है। ये भगवान स्कन्द 'कुमार कार्तिकेय' के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्हीं भगवान
स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण माँ दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को
स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्रि पूजा के पांचवें दिन की
जाती है इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है। इनका वर्ण शुभ्र है।
ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका
वाहन भी सिंह है। नवरात्रि पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व
बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाएं एवं
चित्र वृत्तियों का लोप हो जाता है।
कात्यायनी
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा
शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं
दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
माँ दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते
हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार
उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी
पूजा की थी इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। माँ कात्यायनी अमोद्य
फलदायिनी हैं। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन
साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत
ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों
में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। भक्त को सहजभाव से माँ कात्यायनी के दर्शन
प्राप्त होते हैं। इनका साधक इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त होता है।
कालरात्रि
एक वेणी जपाकर्णपूरा
नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी
तैलाभ्यक्तशरीरणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक
भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा
कालरात्रिर्भयड्करी।।
माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा
जाता है। माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल
देने वाली मानी जाती हैं। इसलिए इन्हें शुभड्करी भी कहा जाता है। दुर्गा पूजा के
सप्तम दिन माँ कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र
में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते
हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित
रहता है। माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं।
जिससे साधक भयमुक्त हो जाता है।
महागौरी
श्वेते वृषे समरूढ़ा
श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं
दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
माँ दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है।
दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और
फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलुष धुल जाते हैं।
सिद्धिदात्री
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यामाना सदा भूयात
सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति को सिद्धिदात्री
कहते हैं। जैसा कि नाम से प्रकट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने
वाली हैं। नव दुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों
की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग
का सामान रखकर प्रार्थना करनी चाहिए।
(संकलित)
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