Monday, 5 June 2017

योगः वेदात् प्रसिद्धयति

"सर्वं योगात् प्रसिद्धयति" की उक्ति प्रसिद्ध है। उसके आधार पर यह कहने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि ^योगं वेदात् प्रसिद्धयति* अर्थात् वेद से योग प्रमाणित होता है। योग का सामान्य अर्थ है - जोड़।

गणितीय प्रक्रिया के चार अंग है – जोड़] बाकी] गुणा और भाग। विद्यार्थी जीवन में बालक अधिकाधिक संचय करता है। गृहस्थ आश्रम में जो जोड़ा उसको बाकी किया। ^त्यक्तेन भुंजीथाः* त्यागकर के भोग करे। वानप्रस्थ आश्रम में गुणन की प्रक्रिया होती है। गुण सम्पदा बढ़ाई जाती है। संन्यास आश्रम में व्यक्ति अपनी अच्छाइयों का लाभ सबको देने लगता है।

योग का प्रथम पाठ जीवेम है। उगते हुए सूर्य को देखकर कहा जाता है - तच्चक्षुः देवहितं पुरस्तात् शqकृमुच्चरत्। पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं शृणुयाम शरदः शतात्। 

मंत्र में पश्येम शरदः शतम् का प्रयोग पहले हैं - जीवमे शरदः शतम् उसके पश्चात्। यदि जीवन जीने की कोई दृष्टि है तो जियो अन्यथा नहीं। जीवन जीने की दृष्टि ही योग है। भारतीय जीवन पद्धति है - योगमयी - यज्ञमयी। अन्य भोग भूमियों की दृष्टि भोगमयी होती है।

जीना है तो पद-पद पर विजय लाभ करते हुए जीना है। वेद की शब्दावली में कहा गया है - वयं जयेम त्वायुजम्। हम पद-पद पर विजय-लाभ करें ईश्वर से युक्त होकर। ईश्वर - सायुज्य प्राप्त करने से विजय होती है। महर्षि पतंजलि ने योग के यम-नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि इन अष्ट सोपानों के माध्यम से चित्तवृत्ति का निरोध करने का मार्ग प्रदर्शित किया है क्योंकि चित्तवृत्ति का निरोध ही  योग है - योगिÜचत्तवृत्ति निरोधः। वे भी मानते हैं कि ईश्वर प्रणिधान से आसानी से चित्तवृत्ति का निरोध हो जाता है।
विजय प्राप्त करना है तो यजन करना पड़ेगा। सर्वश्रेष्ठ कर्म को यज्ञ कहा जाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि कुछ काम श्रेष्ठ होते हैं और कुछ साधारण। किसी भी कार्य को संकल्पित होकर सर्व श्रेष्ठ बनाया जा सकता है। गीता में इसीलिए कर्म कौशल को योग कहा गया है - योगः कर्मसु कौशलम्।
यज्ञ फलदायिनी क्रिया है। उसका फल यजमान को ही नहीं मिलता - सबको मिलता है। इसलिए याज्ञवल्क्य ने कहा है कि अयं तु परमो धर्मः यदयोजेन आत्म दर्शनम्। सभी प्राणियों में आत्म दर्शन करना परम धर्म है। सब अपने हैं। इसलिए यज्ञ से जो मिला उसको सब में बराबर बाँट दिया जाए। यही भक्ति है। इस तरह जीवेम] जयेम] यजेम और भजेम से हमारा जीवन बनता हैं। इनका योग ही सच्चा योग है।