अपने देश भारतवर्ष का अतीत बहुत ही वैभवशाली रहा है | यहाँ की संस्कृति और संस्कार उच्चतम मानवीय-मूल्यों से सराबोर रहे हैं | जीवन का हर क्षेत्र उत्कृष्ट मान्यताओं और परम्पराओं के साथ उमंग और उत्साह से भरपूर था | हर दिवस में शुभता के दर्शन करने की वृत्ति के कारण, यहाँ के लोग वर्ष के ३६५ दिन पूजा-पाठ, कथा, भजन-कीर्तन, सत्संग, व्रत, उपवास, तीज-त्यौहार जैसे कार्यक्रमों में व्यस्त रहकर जीवन को उल्लसित बनाते रहे हैं | बच्चे-बच्चे में ईश-भक्ति, दया-भाव, वचनबद्धता, ईमानदारी, अपनापन, करुणा जैसे सकारात्मक मूल्य भरना, अभिभावक अपना प्रथम कर्त्तव्य समझते थे | इन्हीं उच्च संस्कारों के कारण समाज में आपसी स्नेह, सामंजस्य, संवेदनशीलता, सद्भाव, एकता, आदर-भाव, सहयोग, नैतिकता आदि मूल्यों का अच्छा विस्तार था | यह सब हमारे पूर्वजों, ऋषि-मुनियों, विचारकों, महात्माओं, समाजसेविओं, धर्माचार्यों जैसे महापुरुषों के गहन चिंतन, कठोर परिश्रम, त्याग और सूझबूझ का नतीज़ा था | समाज में सकारात्मक-बोध की निरन्तरता और उसकी पालना को बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार की परम्पराओं और उत्सवों की रचना की गई |
समाज की दशा और दिशा- सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय को साकार रूप देने में यहाँ की शिक्षा, संस्कृति, संस्कारों का अद्भुत योगदान रहा है | कृषि, चिकित्सा, व्यापार, स्थापत्य कला, व्यवस्था, राजनीति, अर्थव्यवस्था, कला, शिक्षा आदि सभी क्षेत्रों की सफलता और उपयोगिता को धर्म और संस्कृति से जोड़ते हुए, आचार-विचार और कर्त्तव्य-बोध जनित साहित्य की रचना भी की गई | समस्त साहित्य व्यक्ति को सहज, सरल और शांत जीवनशैली जीने को प्रेरित करता रहा है | व्यक्तियों की कामनाओं, बुद्धि, ज्ञान, सम्पन्नता, स्वास्थ्य, शक्ति, भय-मुक्ति, सर्वसफलता, मर्यादा, शांति के अनुरूप गणेश, सरस्वती, लक्ष्मी, धन्वन्तरी, दुर्गा-शिव, हनुमान, कृष्ण, राम, बुद्ध-महावीर जैसे महामानवों में भगवत-दर्शन के साथ, उनको कामना-पूर्ति का प्रतिरूप समझकर अधिष्ठाता माना गया | इनकी शिक्षाओं को जन-जन के मन में रचाने-बसाने के लिए विभिन्न जयंतियों, उत्सवों, परम्पराओं, पर्वों आदि की रचना की गई ताकि अतीत की सुगन्ध से पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुवासित होती रहे | सभी महोत्सवों की जड़ में मनुष्य के स्वस्थ, सुखी, सम्पन्न और इंसान बने रहने की भावना तथा प्रेरणा निवास करती है | तीर्थ-स्थलों के पीछे भी इन्हीं मूल्यों के साथ, अनेकता में एकता का भाव सर्वोपरि रहा है | ऐसा ही काम समय-समय पर महापुरुषों ने किया, जिससे यह देश उल्लास-उमंग से पूरित, रंग-रंगीले उत्सवों का केन्द्र बना रहा |
अतीत के मौलिक मूल्यों में कालानुसार कुछ संगत बदलाव भी हुए, परन्तु स्वार्थ-परक तत्वों के असंगत भावों के घालमेल ने इन्हें बहुत अधिक विकृत करके नुकसान पहुँचाया है | इस दिग्भ्रमित मानसिकता का फ़ायदा पश्चिमी संस्कृति ने उठाया, जो आज तेजी से पसरती हुई- सभी को मूल्यहीनता से ग्रसित करती जा रही है | समाज में फैल रही अनेकानेक बुराइयों के दंश से पीड़ित लोगों का सुख-चैन संकट में है | धड़ाधड़ धराशायी हो रहे मानवीय-मूल्यों को बचाने के लिए हमें, अतीत और आधुनिकता के तालमेल से ऐसी जीवनशैली अपनानी होगी, जो सम्पन्नता तो दे- लेकिन हमारा सुख-चैन, शांति और मनुष्यता हमसे न छीने |
अतीत में घटित मानवीय मूल्यों के सृजनहारों के बताए आदर्शों पर चलते रहने की प्रेरणा स्वरूप, हम उत्सव के रूप में- कथा, सत्संग, झाँकियाँ, लीलाएँ, नाटक, व्रत-उपवास, भजन-कीर्तन, आराधना, समागन आदि का आयोजन करते रहते है | 'वसुधैव कुटुम्बकं' की धारणा के साथ छोटे से छोटे जीव से लेकर समस्त वनस्पति-पहाड़-नदियों और ब्रह्माण्ड में व्याप्त सभी ग्रहों, सूर्य, चंद्रमा आदि समस्त अस्तित्व को नमन और उनकी पूजा भी करते हैं | हज़ारों-लाखों वर्षों से प्राप्त उपयोगी अनुभूतियों यानी अतीत की सुगन्ध को उत्सवों के रूप में मनाते है |
अपने पुरातन मूल्यों, संस्कारों और संस्कृति को नहीं भूलने के साथ-साथ, हम आध्यात्मिक और भौतिकता को साथ-साथ भोगें और ऐसी मानसिकता वाली जीवनशैली अपनाएँ की हर-पल उल्लास और उमंग का उत्सव साबित हो | समय की मर्यादा में बंधे इस क्षणिक जीवन को आज के परिप्रेक्ष्य में उन उमंगित, उल्लसित, रंगीले और सर्वोपयोगी उत्सवों से भर दे, जो है - अतीत की सुगन्ध