सरदार पटेल : स्वतंत्र भारत के महान नायक
(31 अक्टूबर, सरदार पटेल जयन्ती/राष्ट्रीय एकता दिवस पर विशेष)
सरदार वल्लभभाई पटेल, ऐसा महान व्यक्तित्व जिनकी दृढ़ता राष्ट्रनीति का मापदंड बन गया। उनकी कार्यशैली राजनीति को देशाभिमुख होने की प्रेरणा देती है। उन्होंने स्वतंत्र भारत के बिखरे रियासतों को टूटने से बचाया। भारत के विभाजन से देश में व्याप्त पीड़ा और जनाक्रोश के बीच दृढ़ता से खड़े होकर देश की जनता में सुरक्षा का विश्वास जगाया। सरदार पटेल वास्तव में स्वतंत्र भारत के महान नायक थे।
– लखेश्वर चंद्रवंशी ‘लखेश’
अंग्रेजों के अत्याचारों से त्रस्त भारतीय जनता ने स्वतंत्रता के लिए महान संघर्ष किया। सत्याग्रह, सशस्त्र क्रांति और आजाद हिन्द सेना तीनों ही माध्यम से स्वतंत्रता की ज्वाला प्रगट हुई। लोगों ने उसमें अपने तन, मन, धन और समय की आहुति दी। हजारों ने अपने जीवन को स्वतंत्रता की बलिवेदी में अर्पित कर दिया। इस महान त्याग से प्राप्त स्वतंत्रता भारतवर्ष के लिए ईश्वर प्राप्ति या मोक्ष की तरह था। परन्तु इस स्वतंत्रता के आगमन के पूर्व ही अलगाववादी प्रवृत्ति ने देश को निहित स्वार्थ के लिए बांटने की साजिश शुरू कर दी थी। और हुआ वही जिसका डर था। 14 अगस्त,
1947 को भारत का बंटवारा हो गया। भारत और पाकिस्तान ऐसे दो देश बन गए। यह विभाजन भारत की स्वतंत्रता के लिए प्राणप्रण से लड़ रहे करोड़ों भारतीय जनता के दिलोदिमाग को झकझोर कर रख दिया। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे अपना ही एक अंग कटकर गिर गया। बंटवारे से प्राप्त पाकिस्तान की भूमि में रह रहे लाखों हिन्दू और सिखों की हत्याएं पाकिस्तान में की जाने लगी। इससे व्याप्त आक्रोश ने भारत में साम्प्रदायिक उन्माद को जन्म दिया। इस हिंसा के दौर में सरदार पटेल ने दृढ़ता का परिचय दिया। उन्होंने कानून व्यवस्था को सुदृढ़ ही नहीं किया, वरन हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए जन प्रबोधन भी किया।
सरदार पटेल ने यह कहकर लोगों को शांत किया कि, “शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाए, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम दे सकता है।” उन्होंने बंटवारे और साम्प्रदायिक हिंसा से देश में उपजे उन्माद के बीच भारतीय जनमानस में एकता की शक्ति के महत्त्व का स्मरण कराया और कहा, “एकता के बिना जनशक्ति, शक्ति नहीं है जबतक उसे ठीक ढंग से सामंजस्य में न लाया जाए और एकजुट न किया जाए, और तब यह आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है।” उन्होंने लोगों को संयमित करने के लिए कहा, “बोलने में मर्यादा मत छोड़ना, गलियां देना तो कायरों का काम है।” उन्होंने लोगों में धाढ़स बंधाया कि, “जीवन की डोर तो ईश्वर के हाथ में है, इसलिए चिंता की कोई बात हो ही नहीं सकती।”
स्वतंत्र भारत का एकीकरण
स्वतंत्र भारत में उस समय लगभग 600 रियासत थे। सरदार पटेल ने कई शासकों से मुलाकात कर उनसे चर्चा की। इसका परिणाम यह हुआ कि कई शासकों ने अपने राज्य को भारतीय संघराज्य में विलीन कर दिया। परन्तु कुछ राजा और नवाब अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद निरंकुश शासक बनने का सपना देख रहे थे, जिनमें जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर मुख्य थे। जूनागढ़ के शासक अपने रियासत को पाकिस्तान में विलीन कराने को गुप्त रूप से षड्यंत्र कर रहे थे। जूनागढ़ के नवाब के इस निर्णय के कारण जूनागढ़ में जन विद्रोह हो गया जिसके परिणाम स्वरूप नवाब को पाकिस्तान भाग जाना पड़ा और जूनागढ़ पर भारत का अधिकार हो गया।
इधर, हैदराबाद का निजाम हैदराबाद स्टेट को एक स्वतन्त्र देश का रूप देना चाहता था इसलिए उसने भारत में हैदराबाद के विलय की स्वीकृति नहीं दी। यद्यपि भारत को 15 अगस्त,
1947 के दिन स्वतन्त्रता मिल चुकी थी किन्तु 18 सितम्बर,
1948 तक हैदराबाद भारत से अलग ही रहा। इस पर तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने हैदराबाद के नवाब की हेकड़ी दूर करने के लिए 13 सितम्बर, 1948 को जनरल चौधरी के नेतृत्व सैन्य कार्यवाही आरम्भ की। भारत की सेना के समक्ष निजाम की सेना टिक नहीं सकी और पांच दिनों में ही निजाम को 18 सितम्बर, 1948 को आत्मसमर्पण करना पड़ा। हैदराबाद के निजाम को विवश होकर भारतीय संघ में शामिल होना पड़ा। इन रियासतों के सन्दर्भ में गांधीजी ने सरदार पटेल को लिखा था, “रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।” निःसंदेह, लौहपुरुष सरदार पटेल की दृढ़ कार्यवाही से ही यह सम्भव हो सका।
जम्मू-कश्मीर और सरदार
जम्मू व कश्मीर एक सामरिक महत्त्व का राज्य था, जिसकी सीमाएं पाकिस्तान, चीन आदि देशों से जुड़ी हुई थीं, और सरदार पटेल उत्सुक थे कि उसका भारत में विलय हो जाए। उन्होंने महाराजा हरि सिंह से कहा कि उनका हित भारत के साथ मिलने में है और इसी विषय पर उन्होंने जम्मू व कश्मीर के प्रधानमंत्री पं.रामचंद्र काक को 3 जुलाई, 1947 को एक पत्र लिखा- “मैं कश्मीर की विशेष कठिनाइयों को समझता हूं, किंतु इतिहास एवं पारम्परिक रीति-रिवाजों आदि को ध्यान में रखते हुए मेरे विचार से जम्मू व कश्मीर के भारत में विलय के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प ही नहीं है।”
गृहमंत्री सरदार पटेल उस समय सूचना एवं प्रसारण मंत्री तथा राज्यों संबंधी मामलों के मंत्री होने के नाते स्वाभाविक रूप से जम्मू व कश्मीर मामले भी देखते थे। किंतु बाद में जम्मू व कश्मीर संबंधी मामले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू स्वयं देखने लगे। जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के साथ पंडित नेहरू के तनावपूर्ण सम्बन्ध थे, इस वजह से महाराजा के साथ बातचीत करने के लिए नेहरू को सरदार पटेल पर निर्भर रहना पड़ता था। 27 सितम्बर, 1947 को ज्ञात हुआ कि पंजाब के उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत से पाकिस्तानी कश्मीर में घुसपैठ की तैयारी कर रहा है। उनकी योजना अक्टूबर के अंत या नवम्बर के आरम्भ में युद्ध छेड़ने की है। बाद में समाचार यह भी मिला था कि पाकिस्तानी हमलावरों ने कुछ क्षेत्र पर अधिकार कर लिया है और आगे बढ़ रहे हैं। इधर, सरदार पटेल के आह्वान पर महाराजा हरि सिंह ने अपनी रियासत जम्मू-कश्मीर को नई स्थापित हो रही संघीय लोकतांत्रिक सांविधानिक व्यवस्था का अंग बनाने के लिए 26 अक्टूबर, 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे।
भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा के सन्दर्भ में पंडित जवाहलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह, जनरल बुकर, कमांडर-इन-चीफ जनरल रसेल और आर्मी कमांडर के बीच बैठक हुई। बैठक में सैन्य संसाधनों की कमी और कठिनाइयों पर चर्चा हो रही थी। सभी चिंतित थे, पर सरदार पटेल गंभीरता से सारी बातें सुन रहे थे। पर दृढ़ता के प्रतीक सरदार पटेल ने कहा- “जनरल, हर कीमत पर कश्मीर की रक्षा करनी होगी। आगे जो होगा, देखा जाएगा। संसाधन हैं या नहीं, आपको यह तुरंत करना चाहिए। सरकार आपकी हर प्रकार की सहायता करेगी। यह अवश्य होना और होना ही चाहिए। कैसे और किसी भी प्रकार करो, किंतु इसे करो।”
सरदार के इस निर्णय से सैन्य अधिकारियों को बल मिला और उन्होंने कश्मीर में आक्रमणकारी पाकिस्तानियों का मुंहतोड़ जवाब दिया। आज जो जम्मू-कश्मीर का जितना भूभाग भारत के पास है वह सरदार पटेल के त्वरित निर्णय, दृढ़ इच्छाशक्ति और विषम-से-विषम परिस्थिति में भी निर्णय के कार्यान्वयन का ही परिणाम है।
वास्तव में, सरदार पटेल के आह्वान और सन्देश में भारतीय समाज में बहुत विश्वास था। जनता मानती थी कि स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल उनकी सुरक्षा, सुविधा और उत्थान के मुख्य आधार हैं। यही कारण है कि सरदार पटेल को लौह पुरुष कहने में लोग गौरवान्वित महसूस करते थे। पर आश्चर्य है कि भारतीय राजनीति के महान आदर्श और स्वतंत्र भारत के एकीकरण के सूत्रधार पटेल के कार्यों के ऐतिहासिक महत्त्व को स्कूली और महाविद्यालयीन शिक्षा में बहुत कम ही जगह मिली, जिसका परिणाम यह हुआ कि सरदार पटेल के कार्यों को गत 6 दशक से जनता ठीक से अवगत न हो पाई। हैरत की बात है कि ऐसे महान व्यक्ति को स्वतंत्रता के 45 वर्ष के बाद 1991 में भारतरत्न दिया गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरदार पटेल की 182 फीट की मूर्ति जो दुनिया की सबसे ऊंची है, का निर्माण करवाया है, बेहद हर्ष का विषय है। पटेल की इस मूर्ति को “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” नाम दिया गया है, जो कि उनके कार्यों के अनुरूप है। सरदार पटेल की जयन्ती को “राष्ट्रीय एकता दिवस” के रूप में मनाया जा रहा है और इस अवसर पर देशभर “रन फॉर यूनिटी” अथवा “एकता दौड़” का आयोजन किया जाता है। अब आवश्यकता इस बात की है कि हमारे देश की जनता अपने लौह पुरुष के जीवन और सन्देशों को जानें और उनसे प्रेरणा लें।
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