Tuesday, 3 March 2015

अतीत की सुगन्ध

संपादकीय

अपने देश भारतवर्ष का अतीत बहुत ही वैभवशाली रहा है | यहाँ की संस्कृति और संस्कार उच्चतम मानवीय-मूल्यों  से सराबोर रहे हैं | जीवन का हर क्षेत्र उत्कृष्ट मान्यताओं और परम्पराओं के साथ उमंग और उत्साह से भरपूर था | हर दिवस में शुभता के दर्शन करने की वृत्ति के कारण, यहाँ के लोग वर्ष के ३६५ दिन पूजा-पाठ, कथा, भजन-कीर्तन, सत्संग, व्रत, उपवास, तीज-त्यौहार जैसे कार्यक्रमों में व्यस्त रहकर जीवन को उल्लसित बनाते रहे हैं | बच्चे-बच्चे में ईश-भक्ति, दया-भाव, वचनबद्धता, ईमानदारी, अपनापन, करुणा जैसे सकारात्मक मूल्य भरना, अभिभावक अपना प्रथम कर्त्तव्य समझते थे | इन्हीं उच्च संस्कारों के कारण समाज में आपसी स्नेह, सामंजस्य, संवेदनशीलता, सद्भाव, एकता, आदर-भाव, सहयोग, नैतिकता आदि मूल्यों का अच्छा विस्तार था | यह सब हमारे पूर्वजों, ऋषि-मुनियों, विचारकों, महात्माओं, समाजसेविओं, धर्माचार्यों जैसे महापुरुषों के गहन चिंतन, कठोर परिश्रम, त्याग और सूझबूझ का नतीज़ा था | समाज में सकारात्मक-बोध की निरन्तरता और उसकी पालना को बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार की परम्पराओं और उत्सवों की रचना की गई |

समाज की दशा और दिशा- सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय को साकार रूप देने में यहाँ की शिक्षा, संस्कृति, संस्कारों का अद्भुत योगदान रहा है | कृषि, चिकित्सा, व्यापार, स्थापत्य कला, व्यवस्था, राजनीति, अर्थव्यवस्था, कला, शिक्षा आदि सभी क्षेत्रों की सफलता और उपयोगिता को धर्म और संस्कृति से जोड़ते हुए, आचार-विचार और कर्त्तव्य-बोध जनित साहित्य की रचना भी की गई | समस्त साहित्य व्यक्ति को सहज, सरल और शांत जीवनशैली जीने को प्रेरित करता रहा है | व्यक्तियों की कामनाओं, बुद्धि, ज्ञान, सम्पन्नता, स्वास्थ्य, शक्ति, भय-मुक्ति, सर्वसफलता, मर्यादा, शांति के अनुरूप गणेश, सरस्वती, लक्ष्मी, धन्वन्तरी, दुर्गा-शिव, हनुमान, कृष्ण, राम, बुद्ध-महावीर जैसे महामानवों में भगवत-दर्शन के साथ, उनको कामना-पूर्ति का प्रतिरूप समझकर अधिष्ठाता माना गया | इनकी शिक्षाओं को जन-जन के मन में रचाने-बसाने के लिए विभिन्न जयंतियों, उत्सवों, परम्पराओं, पर्वों आदि की रचना की गई ताकि अतीत की सुगन्ध से पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुवासित होती रहे | सभी महोत्सवों की जड़ में मनुष्य के स्वस्थ, सुखी, सम्पन्न और इंसान बने रहने की भावना तथा प्रेरणा निवास करती है | तीर्थ-स्थलों के पीछे भी इन्हीं मूल्यों के साथ, अनेकता में एकता का भाव सर्वोपरि रहा है | ऐसा ही काम समय-समय पर महापुरुषों ने किया, जिससे यह देश उल्लास-उमंग से पूरित, रंग-रंगीले उत्सवों का केन्द्र बना रहा |

अतीत के मौलिक मूल्यों में कालानुसार कुछ संगत बदलाव भी हुए, परन्तु स्वार्थ-परक तत्वों के असंगत भावों के घालमेल ने इन्हें बहुत अधिक विकृत करके नुकसान पहुँचाया है | इस दिग्भ्रमित मानसिकता का फ़ायदा पश्चिमी संस्कृति ने उठाया, जो आज तेजी से पसरती हुई- सभी को मूल्यहीनता से ग्रसित करती जा रही है | समाज में फैल रही अनेकानेक बुराइयों के दंश से पीड़ित लोगों का सुख-चैन संकट में है | धड़ाधड़ धराशायी हो रहे मानवीय-मूल्यों को बचाने के लिए हमें, अतीत और आधुनिकता के तालमेल से ऐसी जीवनशैली अपनानी होगी, जो सम्पन्नता तो दे- लेकिन हमारा सुख-चैन, शांति और मनुष्यता हमसे न छीने |

अतीत में घटित मानवीय मूल्यों के सृजनहारों के बताए आदर्शों पर चलते रहने की प्रेरणा स्वरूप, हम उत्सव के रूप में- कथा, सत्संग, झाँकियाँ, लीलाएँ, नाटक, व्रत-उपवास, भजन-कीर्तन, आराधना, समागन आदि का आयोजन करते रहते है | 'वसुधैव कुटुम्बकं' की धारणा के साथ छोटे से छोटे जीव से लेकर समस्त वनस्पति-पहाड़-नदियों और ब्रह्माण्ड में व्याप्त सभी ग्रहों, सूर्य, चंद्रमा आदि समस्त अस्तित्व को नमन और उनकी पूजा भी करते हैं | हज़ारों-लाखों वर्षों से प्राप्त उपयोगी अनुभूतियों यानी अतीत की सुगन्ध को उत्सवों के रूप में मनाते है |

अपने पुरातन मूल्यों, संस्कारों और संस्कृति को नहीं भूलने के साथ-साथ, हम आध्यात्मिक और भौतिकता को साथ-साथ भोगें और ऐसी मानसिकता वाली जीवनशैली अपनाएँ की हर-पल उल्लास और उमंग का उत्सव साबित हो | समय की मर्यादा में बंधे इस क्षणिक जीवन को आज के परिप्रेक्ष्य में उन उमंगित, उल्लसित, रंगीले और सर्वोपयोगी उत्सवों से भर दे, जो है - अतीत की सुगन्ध


Thursday, 19 February 2015

विवेक के गुरू

संपादकीय


अपनी आध्यात्मिक धरा-भारतवर्ष में अनेक ऋषि-महात्माओं ने जन्म लेकर, इस देश का मान-सम्मान पूरी दुनिया में बढ़ाया | ज्ञान की गंगा से सराबोर इस देश ने मार्गदर्शन देकर, विश्व-गुरु का दर्ज़ा प्राप्त किया | भारत, भले ही भौतिक संसाधनों में पिछड़ गया, परन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से सदैव शिखर पर रहा | कई लोगों ने निरक्षरता के बावज़ूद, अपने अंत:करण से उठे ज्ञान के साथ समाज को सुख-समृद्धि की राह बताई | वर्ण-व्यवस्था के साथ-साथ, सत्य-अहिंसा के मूल्यों से समाज में समरसता के वे बीज बो दिए, जिसकी आवश्यकता आज की दुनिया को एक कुटुम्ब मानते हुए सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय की कामना की, जिसकी मिसाल अन्य कहीं नहीं मिलती | हमारे वेद-पुराण और अन्य कई ग्रंथों का पन्ना-पन्ना, मानव जीवन की उच्चता के बोध से भरा पड़ा है| एक अकेली 'गीता' को ही समझकर, उस पर चलें तो जीवन धन्य बन जाए |
हमारे मौलिक दर्शन में जब-जब मिलावट और गिरावट आई, तब-तब इस धरा ने समय-समय पर अनेक धर्मरक्षकों और समाज सुधारकों को जन्म देकर, सही दिशा देने का काम किया | व्यष्टि से समष्टि की ओर जाने की राह दिखाई | आत्मा की अमरता, मध्यम मार्ग, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, कण-कण में भगवान, दरिद्र में नारायण दर्शन, संबंधों की रचना-गरिमा आदि मूल्यों से लेकर वनस्पति व सभी जीवों की पूजा और वर्षभर चलने वाले नाना प्रकार के पर्व-त्यौहारों से मनुष्य के जीवन को उमंग-उल्लास से भर दिया | इस अलौकिक संरचना की बूँद-बूँद में प्रकृति नमन के साथ-साथ इंसानियत से ओत-प्रोत भाव भरे पड़े है | जो इन मूल्यों को स्वीकार कर, अपने जीवन में सचमुच उतारता है - दैवत्व वाली जीवनशैली जीता है तो फिर उसके सुख का कोई पार नहीं है | जीवन-मूल्यों से ओत-प्रोत संस्कारित भारत ने हमेशा मानवीयता को संजोया-संवारा है |
इसी कड़ी में रामकृष्ण परमहंस भी, वे महापुरुष हुए- जो एक सामान्य पुरुष से संन्यास के उच्चतम शिखर पर पहुँचे | उनकी साधना और कार्यों का संक्षिप्त परिचय तो इस अंक में देने का प्रयास किया ही है, परन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने नरेन्द्र यानि स्वामी विवेकानन्द जैसे प्रखर बुद्धिमान, तर्कशील, वैज्ञानिक दृष्टि वाले व्यक्ति को अपने सामने नत-मस्तक होने को विवश कर दिया | श्रीरामकृष्ण से प्राप्त ज्ञान और आशीर्वाद से स्वामी विवेकानन्द ने व्यष्टि से समष्टि की ओर कदम बढाए | भारतीय संस्कृति के उच्चतम मूल्यों से पूरे विश्व को परिचित कराया | उन्होंने मनुष्य निर्माण के सन्दर्भ में उन सभी पूर्वाग्रहों को तोड़ा, जो मनुष्य को दीन-हीन, आलसी, निर्बल, निराश और कर्त्तव्यहीन बनाते थे | स्वामीजी ने सोये पड़े भ्रमित युवकों में इस पावन धरा के प्रति श्रद्धा और कर्त्तव्य बोध का संचार किया | इस महान युवा-प्रेरक ने लुंज-पुंज युवाओं में प्रेम, उत्साह, शक्ति, अनुशासन आदि के भाव भरकर, उन्हें देश-भक्ति की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा दी | डेढ़ शताब्दी का वक्त गुज़र गया, परन्तु आज भी हमें विवेकानन्द की सीख की, कहीं अधिक जरुरत है - उनके बिना यह भारत देश अधुरा है | आधुनिक युग के नकारात्मक थपेड़ों से बचने के लिए, विवेकानन्द के बताए मार्ग पर चलाना ही होगा- जीवन को सकारात्मकता से ओतप्रोत करना ही होगा | युवाओं के मसीहा की बताई डगर पर चलना ही होगा |
पाश्चात्य संस्कृति के आगोश में भटकती, आज की युवा पीढ़ी को यदि बचाना है, तो उन्हें अपनी उच्च संस्कृति और संस्कारों की याद दिलाकर, श्रीरामकृष्ण के शिष्य - स्वामी विवेकानन्द के बताए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना होगा, मनुष्य में दिनोंदिन आती गिरावट तभी रोकी जा सकती है, जब हमसब मिलकर स्वामी विवेकानन्द के मनुष्य निर्माण, दरिद्रनारायण की सेवा, नारी उत्थान, उच्च चरित्र, ऊँच-नीच, भेदभाव मिटाने, अन्धविश्वास से छुटकारा, राष्ट्रहित-सर्वोपरि जैसे पथ-प्रदर्शक विचारों को मनसा-वाचा-कर्मणा अपने जीवन में उतारें | स्वामीजी का एक अकेला उद्घोष- उठो ! जागो !! लक्ष्य प्राप्ति तक रुको मत...माँ भारती को शिखर पर ले जाने को काफ़ी है |

वे श्रीरामकृष्ण ही थे, जिन्होंने एकदूसरे को खोजा और इस देश को विवेकानन्द जैसा देशभक्त संन्यासी देकर, हमें कृतार्थ किया | सहज, सरल, विरक्त, ज्ञानी, संन्यासी, ध्यानी, त्यागी और करुणा से भरे श्रीरामकृष्ण परमहंस के बिना, हमें विवेकानन्द मिल पाना कभी संभव नहीं था | ऐसे महान विभूति थे - विवेक के गुरु

Friday, 9 January 2015

पसरती नकारात्मक प्रेरणा


संपादकीय

जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य किसी न किसी से प्रेरित रहता है बढ़ती उम्र के साथ उसके प्रेरणा-स्रोत भी बदलते रहते हैं देश, काल, परिस्थिति और स्वयं की आवश्यकता एवं रुचि के अनुसार ही व्यक्ति प्रेरक का चुनाव करता है अबोध बालक के लिए प्रेरणा के सभी द्वार खुले रहते हैं किशोरावस्था में घर का माहौल, विद्यालय, मित्रगण उसकी प्रेरणा बनते हैं वे अपने अध्यापक के व्यक्तित्व और जीवनशैली से अधिक प्रभावित होते हैं अब युवाओं की प्रेरणा  दिशा बदल रही है। आधुनिक युग की चकाचौंध से प्रभावित युवा-वर्ग, पाश्चात्य जीवनशैली से प्रेरित होकर, भौतिक संसाधनों की होड़ में, प्रतिस्पर्धा की जकड़न से घिरते जा रहे हैं धनाधारित केरियर का चुनाव उनकी पहली पसन्द है
 
पहले महापुरुषों के जीवन और कार्य ही सबके लिए प्रेरणा के उद्गम हुआ करते थे लोग सत्यता, ईमानदारी, संतोष, सेवाभाव, अहिंसा, संवेदना, प्रेम, आपसी सहयोग आदि मानवीय मूल्यों की प्रेरणा से प्रायः ओतप्रोत रहा करते थे। सीमित साधनों के बावजूद, लोग स्वस्थ प्रसन्नचित्त जीवन व्यतीत करते थे संवेदना इतनी विस्तरित थी कि दूर-दराज की दुःखद घटना को सुनकर, लोग व्यथित हो जाया करते थे ईमानदारी का आलम यह था कि लेने के बाद, लौटाने की चिंता में नींद गायब हो जाती थी अहिंसा इतनी गहरी थी कि चींटी को मारना भी पाप समझा जाता था असहाय की मदद को हजारों हाथ उठ जाते थे माता-पिता की सेवा सर्वोपरि थी गाँव की बेटी को, सब अपनी ही बेटी समझा करते थे इन्हीं मानवीय मूल्यों से मनुष्यता सरसब्ज़ थी। लोग काफी सन्तुष्ट दिखाई देते थे ये सारे मूल्य धर्म, संस्कृति और संस्कारों की छाया में फले-फूले, हालाँकि हर युग में समाजकंटकों की भी उपस्थिति बरकरार बनी रही, परन्तु उनकी संख्या इतनी अधिक कभी नहीं रही, जो आज हमें देखने को मिलती है जनसंख्या और प्रसार माध्यमों के फैलाव के तर्क को मान भी लें, तो भी वर्तमान स्थिति अधिक भयावह बनती जा रही है पतन की रफ्तार तेज है

पहले हर युग में प्रेरणा-स्रोत महापुरुषों की अधिकता ही रही है, जबकि आज मार्गदर्शकों का अकाल-सा है आज साधनों की भरमार है, फिर भी लोग खालीपन से ग्रसित हैं शिखर की ओर बढ़ता तथाकथित विकास भी लोगों की अति महत्वाकांक्षी मन को उछाल देने का दोषी साबित होने लगा है अपनी संस्कृति तथा संस्कारों का अभाव और पाश्चात्य भौतिक उपभोगवादी प्रभाव, युवाओं में नकारात्मक प्रेरणा का पोषण कर रहा है इसके कारण दिन--दिन घटित हो रही दुःखद घटनाएँ, मनुष्यता की गिरावट को दानवता की ओर धकेल रही हैं। हमारे सारे आदर्श मूल्य भौतिकता की आँधी में, लड़खड़ाते दिखाई दे रहे हैं इसी कारण मनुष्यता के लोप होने की बीमारी से पूरा देश ग्रसित होता जा रहा है यह आपाधापी वाली दौड़ , मनुष्य से उसकी मनुष्यता छीनकर, उसे और अधिक नंगा बनाती हुई - आदिमता की ओर ले जा रही है जो अपने माता-पिता की सेवा और आदर नहीं कर सकता, अपनों से प्रेम नहीं कर सकता, उससे राष्ट्र की सेवा, आदर और प्रेम की उम्मीद करना एक सपना है नकारात्मक प्रेरणा की डगर पर चलने वाले लोग, राष्ट्र की अस्मिता में कैंसर के कारक साबित होते जा रहे हैं तेजी से गिरती मानवीय-मूल्यों की इस गिरावट को रोकने के लिए युवाओं में सनातन संस्कृति और संस्कारों के पुनर्जागरण द्वारा उनमें सकारात्मक प्रेरणा पैदा करनी होगी उन्हें भारतीय जीवनशैली, खानपान, रहन-सहन, आचार-विचार, वेशभूषा आदि को अपनाने हेतु प्रेरित करना होगा, ताकि वे स्वस्थ, सुखी और सम्पन्न होकर, राष्ट्रोत्थान में अपना भरपूर योगदान दे सकें। नशे और झूठे अहंकार एवं दिखावे से दूर रहकर, स्वयं एवं समाज के प्रति उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर सकें

यह देश कभी विश्वगुरु रहा है अपने ऋषि-मुनियों, महापुरुषों, महात्माओं और समाज सुधारकों की प्रेरणा से ही मानवीयता के उच्चतम मूल्यों का संदेश पूरी दुनिया को दे पाया स्वामी विवेकानन्द के मनुष्य निर्माण, शिक्षा, दरिद्रनारायण की सेवा, कुरीतियों से छुटकारा, धर्म की सत्य और सुगम व्याख्या, नारी चेतना, राष्ट्र निर्माण, प्रेम और भाईचारा जैसे उच्च विचारों से प्रेरणा लेकर, हम अपने चारित्रिक विकास के साथ अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। अपने पथ से भटका युवावर्ग, राष्ट्रपुरुष स्वामी विवेकानन्द की 151वी जयन्ती पर उनसे सकारात्मक प्रेरणा लेकर, अपनी सच्ची आदराञ्जलि के समर्पित भाव के साथ, रोक सकता है -
पसरती नकारात्मक प्रेरणा