संपादकीय
जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य किसी न किसी से प्रेरित रहता है । बढ़ती उम्र के साथ उसके प्रेरणा-स्रोत भी बदलते रहते हैं । देश, काल, परिस्थिति और स्वयं की आवश्यकता एवं रुचि के अनुसार ही व्यक्ति प्रेरक का चुनाव करता है । अबोध बालक के लिए प्रेरणा के सभी द्वार खुले रहते हैं । किशोरावस्था में घर का माहौल, विद्यालय, मित्रगण उसकी प्रेरणा बनते हैं । वे अपने अध्यापक के व्यक्तित्व और जीवनशैली से अधिक प्रभावित होते हैं । अब युवाओं की प्रेरणा दिशा बदल रही है। आधुनिक युग की चकाचौंध से प्रभावित युवा-वर्ग, पाश्चात्य जीवनशैली से प्रेरित होकर, भौतिक संसाधनों की होड़ में, प्रतिस्पर्धा की जकड़न से घिरते जा रहे हैं । धनाधारित केरियर का चुनाव उनकी पहली पसन्द है ।
पहले
महापुरुषों के जीवन
और कार्य ही
सबके लिए प्रेरणा
के उद्गम हुआ
करते थे ।
लोग सत्यता, ईमानदारी,
संतोष, सेवाभाव, अहिंसा, संवेदना,
प्रेम, आपसी सहयोग
आदि मानवीय मूल्यों
की प्रेरणा से
प्रायः ओतप्रोत रहा करते
थे। सीमित साधनों
के बावजूद, लोग
स्वस्थ व प्रसन्नचित्त
जीवन व्यतीत करते
थे । संवेदना
इतनी विस्तरित थी
कि दूर-दराज
की दुःखद घटना
को सुनकर, लोग
व्यथित हो जाया
करते थे ।
ईमानदारी का आलम
यह था कि
लेने के बाद,
लौटाने की चिंता
में नींद गायब
हो जाती थी
। अहिंसा इतनी
गहरी थी कि
चींटी को मारना
भी पाप समझा
जाता था ।
असहाय की मदद
को हजारों हाथ
उठ जाते थे
। माता-पिता
की सेवा सर्वोपरि
थी । गाँव
की बेटी को,
सब अपनी ही
बेटी समझा करते
थे । इन्हीं
मानवीय मूल्यों से मनुष्यता
सरसब्ज़ थी। लोग काफी
सन्तुष्ट दिखाई देते थे
। ये सारे
मूल्य धर्म, संस्कृति
और संस्कारों की
छाया में फले-फूले, हालाँकि हर
युग में समाजकंटकों
की भी उपस्थिति
बरकरार बनी रही,
परन्तु उनकी संख्या
इतनी अधिक कभी
नहीं रही, जो
आज हमें देखने
को मिलती है
। जनसंख्या और
प्रसार माध्यमों के फैलाव
के तर्क को
मान भी लें,
तो भी वर्तमान
स्थिति अधिक भयावह
बनती जा रही
है । पतन
की रफ्तार तेज
है ।
पहले
हर युग में
प्रेरणा-स्रोत महापुरुषों की अधिकता
ही रही है,
जबकि आज मार्गदर्शकों
का अकाल-सा
है । आज
साधनों की भरमार
है, फिर भी
लोग खालीपन से
ग्रसित हैं ।
शिखर की ओर
बढ़ता तथाकथित विकास
भी लोगों की
अति महत्वाकांक्षी मन को उछाल
देने का दोषी
साबित होने लगा
है । अपनी
संस्कृति तथा संस्कारों
का अभाव और
पाश्चात्य भौतिक उपभोगवादी प्रभाव,
युवाओं में नकारात्मक
प्रेरणा का पोषण
कर रहा है
। इसके कारण
दिन-ब-दिन
घटित हो रही
दुःखद घटनाएँ, मनुष्यता
की गिरावट को
दानवता की ओर
धकेल रही हैं।
हमारे सारे आदर्श
मूल्य भौतिकता की
आँधी में, लड़खड़ाते
दिखाई दे रहे
हैं । इसी
कारण मनुष्यता के
लोप होने की
बीमारी से पूरा
देश ग्रसित होता
जा रहा है
। यह आपाधापी
वाली दौड़ , मनुष्य
से उसकी मनुष्यता
छीनकर, उसे और
अधिक नंगा बनाती
हुई - आदिमता की
ओर ले जा
रही है ।
जो अपने माता-पिता की
सेवा और आदर
नहीं कर सकता,
अपनों से प्रेम
नहीं कर सकता,
उससे राष्ट्र की
सेवा, आदर और
प्रेम की उम्मीद
करना एक सपना
है । नकारात्मक
प्रेरणा की डगर
पर चलने वाले
लोग, राष्ट्र की
अस्मिता में कैंसर
के कारक साबित
होते जा रहे
हैं । तेजी
से गिरती मानवीय-मूल्यों की इस
गिरावट को रोकने
के लिए युवाओं
में सनातन संस्कृति
और संस्कारों के
पुनर्जागरण द्वारा उनमें सकारात्मक प्रेरणा
पैदा करनी होगी
। उन्हें भारतीय
जीवनशैली, खानपान,
रहन-सहन, आचार-विचार, वेशभूषा आदि
को अपनाने हेतु
प्रेरित करना होगा, ताकि वे
स्वस्थ, सुखी और
सम्पन्न होकर, राष्ट्रोत्थान में
अपना भरपूर योगदान
दे सकें। नशे
और झूठे अहंकार
एवं दिखावे से
दूर रहकर, स्वयं
एवं समाज के
प्रति उत्तरदायित्वों का
निर्वहन कर सकें
।
यह
देश कभी विश्वगुरु
रहा है ।
अपने ऋषि-मुनियों,
महापुरुषों, महात्माओं और समाज
सुधारकों की प्रेरणा
से ही मानवीयता
के उच्चतम मूल्यों
का संदेश पूरी
दुनिया को दे
पाया । स्वामी
विवेकानन्द के मनुष्य
निर्माण, शिक्षा, दरिद्रनारायण की
सेवा, कुरीतियों से
छुटकारा, धर्म की
सत्य और सुगम
व्याख्या, नारी चेतना,
राष्ट्र निर्माण, प्रेम और
भाईचारा जैसे उच्च
विचारों से प्रेरणा
लेकर, हम अपने
चारित्रिक विकास के साथ
अपने जीवन को
सफल बना सकते
हैं। अपने पथ
से भटका युवावर्ग,
राष्ट्रपुरुष स्वामी विवेकानन्द की
151वी जयन्ती पर उनसे
सकारात्मक प्रेरणा लेकर, अपनी
सच्ची आदराञ्जलि के समर्पित भाव के
साथ, रोक सकता
है -
पसरती नकारात्मक प्रेरणा
पसरती नकारात्मक प्रेरणा
अति सुन्दर....
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