माघ शुक्ला पंचमी को वसन्त पंचमी कहा जाता है। सरस्वती की पूजा करके, वसन्त का स्वागत किया जाता है। मधु और माधव - चैत्र और वैशाख महीने को वसन्त ऋतु कहा जाता है। आज वसन्त कालचक्र में आता है। वसन्त अपने आप नहीं आता। उसे बुलाना पड़ता है। हम वसन्त प्रारम्भ होने के सवा महीने पहले ही वसन्त को न्यौता देते हैं। महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने गाया-
धीरे धीरे उतर क्षितिज से
आ वसन्त रजनी !
सौ वर्ष हो गए। हिन्दी साहित्य में छायावाद का आरम्भ हुआ। जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा, भगवतीचरण वर्मा आदि ने अपनी छायावादी रचनाओं को माध्यम बनाकर, वसन्त को निमंत्रण दिया।
वसन्त प्रकृति का यौवन होता है। उसका आह्वान ताजा फूलों से किया जाता है- बासी फूलों से नहीं- प्रकृति के यौवन का शृंगार - करेंगे, कभी न बासी फूल। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने ‘वसन्त आ गया है’ निबन्ध में कहा है कि वसन्त को आमंत्रित करो तो वसन्त आएगा- बिना बुलाये कभी नहीं आ सकता। निराला ने माता सरस्वती को पुकारा-
भारति ! जय-विजय करे !
प्रिय स्वतंत्र रव, अमिय मंत्र नव, भारत में भर दे।
नये अमृतगान से सरस्वती के माध्यम से वसन्त को निमंत्रित किया जाता है। दिनकर ने ‘मेरे नगपति मेरे विशाल- मेरी जननी के स्वर्ण भाल कह कर, यौवन का आह्वान किया। माखन लाल चतुर्वेदी ने गाया-
सिर पर पाग आगे हाथों में लेचानी का घड़ा
जवानी देख की प्रियतम खड़ा!
जयशंकर प्रसाद ने गाया-
हिमाद्रि तुम श्रृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतन्त्रता पुकारती
अमत्र्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पन्थ है, बढ़े चलो बढ़े चलो।
सारा छायावादी काव्य, प्रकृति के यौवन का आह्वान है- वसन्त का आह्वान है। सौ वर्ष के साहित्य के विकास का अध्ययन करके, अगले सौ वर्ष के विकास की रूपरेखा बनानी चाहिए। वसन्त पंचमी को सरस्वती पूजन करके, ऐसा किया जा सकता है। भारत युवाओं का देश है। आबादी का 61 प्रतिशत भाग युवाओं का है। स्वामी विवेकानन्द युवकों का आह्वान करते हुए कहते थे- प्राण वायु का ऐसा कण, अनन्त निष्प्राणों में प्राण का संचार करता है। ज्योति का एक कण अनेक अंधकार में खोये हुओं को ज्योतिर्मय बना सकता है- तुम तो प्राणमय हो, ज्योतिर्मय भी- प्राणमय ज्योति, ज्योतिर्मय प्राण! क्या नहीं कर सकते?
स्वामी विवेकानन्द युवाओं को फौलादी मन और करुणा से द्रवीभूत मन (हृदयों) वाला देखना चाहते थे। ऐसे युवाओं में ही वसंत का आगमन होता है। चिर वसन्त की कामना, भारत में ही की जा सकती है। कोई भी बूढ़े भारत की कल्पना और कामना नहीं करना चाहता।
वस् आच्छादन धातु से वसन्त शब्द बनता है। वस्-प्रकटीकरणे धातु भी है। वसन्त इसी धातु से बना हुआ शब्द है। व्यक्ति अपनी शक्तियों का प्रकटीकरण करता है- स्वयं को अभिव्यक्त करता है- आत्माभिव्यक्ति करता है। आत्माभिव्यक्ति करके, व्यक्ति अपने वासन्ती व्यक्तित्व का परिचय कराता है।
श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है-
उच्छरेद् आत्मनात्मानं नात्मानमव सादयेत्।।
अपना उद्धार स्वयं करें। अपना अपमान कभी न करें।
वासन्ती व्यक्तित्व का धनी व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है। वह युवा तो होगा ही।
कोकिल को वसन्त के आगमन का सन्देश वाहक माना जाता है-
कोकिल बोल
कनरस घोला
आया वह
बन कर वसन्त का दूत।
भगवती सरस्वती जाड़े की जड़ता को दूर करती हुई, वसन्त को आमंत्रित करती है। जड़ता को दूर करना विद्या की देवी का प्रथम कर्तव्य है- जादयान्धकारावहाम्। इस गीत में वसन्त का आह्वान है-
नमन चषक रीते है
ज्योति मदिर पीने दो !
सपना सा जाग गया नीले आकाश तले
हरियाली गोदी में सौरभ के लाल पले।
बहक बहक पवन के
झकोरे रस पीने दो
फागुन में छलक गई मान भरी गागरी
सुधि को बटोर लाई मधुकर की रागनी।
मन की मनुहार सखी
सपनों में सोने दो
रंग भरे आंगन में मधु की बरसात री
दूध दुही चाँदनियाँ प्रीति भरी रात री
मुधकासी पाहुन को मन भर कर जीने दो।