Sunday, 6 May 2018

त्वं हि ब्रह्मा बभूविथ

राष्ट्रमण्डल खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने 26 स्वर्ण पदक सहित कुल 66 पदक जीत कर भारत का गौरव बढ़ाया। पदक विजेताओं में अधिक उल्लेखनीय यह है कि अग्रणी पंक्ति में महिलाएं रहीं। उन्होंने कई मानक भी स्थापित किए। खिलाड़ी दल का ध्वज साक्षी ने संभाला था। इससे देशवासियों में जो आशा बंधी थी, वह पूरी हुई।

संयोग की ही बात थी कि सायना नेहवाल से साक्षी को भिड़ना पड़ा। नेहवाल को स्वर्ण पदक और साक्षी को रजत पदक मिला। दोनों अलग अलग खेलतीं तो दोनों स्वर्ण पदक प्राप्त करतीं। महिला शक्ति के सफल और सार्थक प्रदर्शन को देखकर यह अनिवार्य हो गया है कि खेलनीति बने और महिलाओं को अधिकाधिक अवसर दिया जाय। पहलवानी, भारोत्तोलन, भाला फेंक, दौड़, सर्वत्र महिलाएं छाई रहीं।
 
इसी वर्ष छोटी-सी महिला वायुयान चालिका ने अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन करके सबसे बड़े युद्धकजेट विमान को उड़ाया। दूसरी ने नागरिक विमान उड़ाकर सर्वोत्तम प्रदर्शन किया। स्थल सेना की महिला विंग ने भी अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन किया। हाकी, क्रिकेट, फुटबाल जैसे खेलों में भी भारत को गौरव, महिलाओं द्वारा मिला।
 
कभी कल्पना चावला ने अंतरिक्ष यात्रा द्वारा भारत का नाम प्रोज्ज्वल किया था। आने वाले समय में हमारी अंतरिक्ष यात्रा में फिर महिला जाने वाली है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधानशाला में कई महिलाएं काम कर रही हैं। प्रक्षेपणास्त्र निर्माण में भी उनका अभूतपूर्व योÛदान है। परमाणु आयुध निर्माण में भी एपीजे अब्दुलकलाम के दायित्व को संभाल रही हैं।
 
निर्मला सीतारामन् इस समय देश की रक्षा मंत्री हैं और वे भारत को रक्षा के क्षेत्र में सर्वोत्तम बनाने का संकल्प कर चुकी है। अध्यात्म चिन्तन में कभी गार्गी, मैत्रेयी, आम्भृणी के नाम प्रसिद्ध रहे हैं, मातृत्व के क्षेत्र में मदालसा का नाम अग्रणी रहा है, जिसने अपने पुत्रों को निवृत्ति के पुत्रों मार्ग पर भी आगे बढ़ाया और प्रवृत्ति के मार्ग पर भी। माता पार्वती ने देव सेनापति स्कन्द स्वामी को जन्म दिया था।
 
लकड़हारे से कालिदास बनाने वाली पत्नी को कैसे भुलाया जा सकता है? शकुन्तला ने दुश्यन्त से प्रेम करके सर्वदमन भरत को जन्म दिया था। अहल्या, आत्रेयी, अंजना, कौसल्या, कैकेयी, आत्रेयी, सुमित्रा, जनकनन्दिनी, महारानी लक्ष्मीबाई, चांद बीबी, रजिया, जीजा बाई, दुर्गावती, हाडा रानी आदि के मातृत्व, पत्नीत्व, वीरत्व को ऐतिहासिक गौरव प्राप्त है। पन्ना धाय के त्याग को कैसे भुलाया जा सकता है। इन्दिरा गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में भारतीय प्रायद्वीप का इतिहास भी बदल दिया और भूगोल भी। पाकिस्तान की 93000 सैनिकों की सैनिक टुकड़ी का आत्म समर्पण करवा दिया। पाकिस्तान का गर्व चूर-चूर कर दिया।

वनवासिनी शबरी को राम ने भामिनी कहा है - प्रकाशवती। अकिंचनता अतिथि सत्कार में बाधक नहीं हुई। बेर ही उपहार बन गए।

माताएं पलने में बच्चों को झुलाते हुए हालरिये गा कर पुत्र को मातृभूमि के लि, बलिदान देने का पाठ पढ़ाती हैं-
 
इळा न देणी आपणी, हालरिये हुलराय।
पूत सिखावे पालणे मरण बड़ाई माय।।
                                                          - वीर सतसई


साहित्य के क्षेत्र में महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चैहान, मृदुला सिन्हा आदि ने नाम कमाया है। राजनीति के क्षेत्र में वसुन्धरा राजे, नजमा हैपतुल्ला,आनन्दी बेन पटेल काम कर रही हैं।

घर घर में कुलवधू के रूप में घर में अपने कौशल को प्रकट करने वाली गृहिणी किसी भी वीरांगना से कम नहीं कही जा सकती। वेद की उक्ति है - जायेदस्तम् = जाया इत् अस्तम् = जाया ही घर है। इसी के आधार पर मनु ने कहा था - गृहिणी गृहम् उच्यते। वह उस घर का निर्माण करती है, जिससे राम के नाम जैसा पवित्र घर बनता है - तुलसी रघुनाथ नाम आपुनो सो घर है।
राम ने कहा था -
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

सन्तान को संस्कार प्रदान करके, मनुष्य बनाने वाली माता ही होती है। परिवार, संस्कार निर्माण का केन्द्र होता है। वह संस्कार का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है, सबसे बड़ा चिकित्साल्य है और सबसे बड़ा साधना केन्द्र है। उसमें सभी सदस्यों को अपने दोषों को दूर भगाने की सुविधा प्राप्त होती है -
परित: (नि-) वारयज्ञति स्वदोषान् यत्र तत् परिवारः।

इसका निर्माण कुलवधुएं करती हैं। अपने-पराये के भेद को दूर करके, उस चारित्रिक उदारता को महिलाएं ही जन्म देती हैं, जिससे विश्व-परिवार का भाव जागता है -
अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।
                                                           -मनु स्मृति

इसी कारण वेद में कहा गया है - त्वं हि ब्रह्मा बभूविथ - हे माता तू तो साक्षात् ब्रह्मा बन गई है। माता की गोद आकाश और धरती से भी बड़ी होती है। उसी में सन्तान पलती है।