Tuesday, 6 February 2018

मनुष्य बन

यों तो भारतीय समाज एक ही आस्था के साथ जीता है] पर लोगों में वोट की राजनीति ने लोगों में दूरियाँ पैदा कर दी है। इससे आदमी अकेला और सुरक्षित हो गया। अभी अभी जयपुर में श्रीमद्भगवद्गीता पर आयोजित निबन्ध प्रतियोगिता में एक मुस्लिम बालक ने भाग लेकर प्रथम स्थान प्राप्त किया। उसके पिता सामान्य मजदूरी करते हैं। बालक को वातावरण नहीं मिला फिर भी उसने अपनी उपलब्धि से प्रषंसा पाई। बालक मिडिल स्कूल में पड़ता है। दो अन्य छात्रों ने भी उल्लेखनीय स्थान प्राप्त किया।
 

अजमेर में भारत विकास परिषद् की ओर से आयोजित ज्ञान प्रतियोगिता में एक सातवीं कक्षा की मुस्लिम छात्रा ने कहा - ये बड़े-बूढ़े हम बच्चों पर विश्वास नहीं करते वरना 45 प्रश्नों में से 36 के उत्तर क्यों माँगे गए \ में पूरे 45 प्रश्नों के उत्तर दे रही है। यदि एक भी उत्तर गलत हो तो मुझे शून्य अंक दिए जाएँ। उसके पूरे में से पूरे अंक मिले।
 

जयपुर के छात्र-छात्राओं ने तो यह भी कहा कि उनके संस्कृत अध्यापक उनको संस्कृत बोलना नहीं सिखाते। वे कह देते हैं कि संस्कृत श्लोकों के अर्थ हिन्दी में लिख दो - इतना पर्याप्त है। इस प्रवृत्ति से संस्कृत को व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं मिलता। बच्चों को संस्कृत बोलने का अभ्यास भी कराया जाना आवश्यक है। नसीराबाद का रेलवे में काम करने वाला एक परिवार रामायणी परिवार है। उसमें रामचरित मानस को कण्ठस्थ करने की माता-पिता और बच्चों में होड़ लगी रहती है। वह भी मुस्लिम परिवार है। ये संस्कार उनको भारत की भूमि से ही मिले हैं। किसी ने उन पर दबाव नहीं डाला। भारतीय अखण्ड समाज को प्रमाणित करने वाले उदाहरण हैं ये।

इंग्लैण्ड में एक सर्वेक्षण में 23 गाँव ऐसे निकले जो संस्कृत भाषी हैं। उनको किसी ने भारत से जाकर संस्कृत नहीं पढ़ाई। हमारे भारतीय परिवार ही कभी वहाँ जाकर बसे होंगे। अमरीका में ‘मोयी’ समुदाय के लोग नित्य प्रति अग्निहोत्र करते हैं। यज्ञ परम्परा की समझ न होने पर भी कर्तव्य कर्म मान कर ऐसा करते हैं।
 

रूस में मास्को नदी के किनारे एक लम्बा-चैड़ा नगर उत्खनन में मिला है। उसमें भी सभी घरों में यज्ञवेदियाँ मिली हैं। लोग अग्निहोत्र करते रहे होंगे। संसार की सब भाषाएँ संस्कृत से निःसृत हुई हैं। सब जगह संस्कृत बोलने वाले रहते होंगे तभी ऐसा संभव है। भारत तो उदयाचल (प्रशान्त महासागर के किनारे) से अस्ताचल (भूमध्यसागर का टेरेसां) तक है।
 

यह भरतखण्ड है। सम्पूर्ण एषिया जम्बूद्वीप है। भारतीयों के आदर्श और श्रेष्ठ चरित्र के कारण इसको आर्यावर्त कहा जाता है। आर्य कोई जाति नहीं है। जिसका श्रेष्ठ आचरण हो उसी को आर्य कहा जाता है। अर्यस्य अपत्यम् आर्यम् उक्ति के अनुसार आर्य ईश्वर पुत्र होते हैं। वेद में आता है - शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्राः कथन के अनुसार आर्य अमृत स्वरूप परमात्मा के पुत्र होते हैं।
 

वेद मानवता का संविधान है। उसमें मंत्रद्रष्टा ऋषियों की विविध दृष्टियाँ संकलित हैं। उनमें से अपनी रुचि और प्रकृति के अनुसार किसी भी दृष्टि को अपना कर श्रेष्ठ मनुष्य बनाया जा सकता है। वेद का आदेश है - मनुर्भव जनया दिव्यं जनम्।