Monday 7 August 2017

राष्ट्र का रक्षा कवच

वेद का वचन है - पुमान् पुमांसं परिपातु विश्वतः। मनुष्य मनुष्य की रक्षा करे सब ओर से। मनुष्य कैसे करे मनुष्य की रक्षा ? मनुष्य का धर्म मनुष्यता है - मानवता है। उस धर्म का पालन करने से मनुष्य के साथ ही सभी प्राणियों की रक्षा होगी। पुरानी परम्परागत मान्यता है - धर्मो रक्षति रक्षतिः। धर्म की रक्षा करने से वह सबकी रक्षा करता है। 

लोक में रक्षाबन्धन का त्यौहार प्रचलित है। उसमें सामान्यतः बहिनें भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधती हैं। सर्वप्रथम शची पौलोगी ने अपने पति और देवों की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बाँधा था। प्रेरणा थी देव-गुरु बृहस्पति की। कुलगुरु यजमान के राखी बाँधता है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर शान्ति निकेतन में सभी छात्रों की कलाई में राखी बाँधते थे।

रक्षासूत्र रक्षणीय पदार्थ - राष्ट्र, वेद, धर्म, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए बाँधा जाता है। श्रावणी पूर्णिमा को ऋग्वेदीय परम्परा की, हरतालिका को सामवेदीय परम्परा की, ऋषि पंचमी को यजुर्वेदीय परम्परा की और विजयादशमी को अथर्व वेदीय परम्परा की राखी होती है। वस्तुतः इन दिनों से वेदारम्भ या विद्यारंभ संस्कार होते थे।

वेदारम्भ संस्कार करते समय आचार्य प्रवेशार्थी छात्रों को रक्षा सूत्र बाँधकर उनको राष्ट्र, वेद, धर्म, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध करते थे। चारों वेदों के आचार्यों के शिक्षा सत्र इन दिनों शुरू होते थे। वैसे हर धार्मिक कार्य को करने के लिए कलाई पर व्रत धारण करने की ‘वर्णी’ बाँधी जाती है। वह भी रक्षासूत्र ही है।

1965 में युद्ध के लिए भारतीय सेना की तीन बटालियनों सीमा पर युद्ध के लिए जा रही थी उस समय राजकीय महाविद्यालय, किशनगढ़ के छात्र-छात्राओं ने रेलवे-स्टेशन पर पहुँच कर सबको राखी बाँधी और उनको फल-मिठाई खिलाई। अद्भुत दृश्य था वह ! फल-मिठाई का भुगतान संकाय सदस्यों ने किया। युद्ध प्रयाण का परम्परागत क्षण जीवित हुआ।

1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया। बांग्लादेश बन गया पूर्वी पाकिस्तान। कारगिल युद्ध में भी पाकिस्तान ने मुँह की खाई। यदि अब पाकिस्तान ने दुस्साहस किया तो उसके टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे।

भारत के पास रक्षा कवच के रूप में परिवार है। संसार का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय, चिकित्सालय, प्रशिक्षणालय और साधना केन्द्र है परिवार। उसमें प्रत्येक सदस्य को अपने दोष दूर भगाने का अवसर मिलता है। परितः वारयति स्वदोशान् यस्मिन् इति। वह किले की तरह होता है जिसका निर्माण कुलवधू करती है - जायेदस्तम् - जाया ही घर है - गृहिणी गृहम् उच्यते। चारित्रिक दृढ़ता सम्पन्न उस किले में सभी की रक्षा होती है। पारिवारिक एकता ही उसे रक्षा-सामथ्र्य प्रदान करता है।