Tuesday 4 July 2017

प्रेरणा : शाश्वत साधना

प्रेरणा उसे मिलती है जो प्रेरणा लेना चाहे। प्रेरणा पुरुष कोई भी हो सकता है - देवता, शासक, आचारवान् कोई भी पुरुष । परम्परा कहती है - वेदात् सर्वं प्रसिद्धयति। ज्ञान विज्ञान के विस्तार का मूल वेद है। हमारे सभी ऐतिहासिक प्रेरणा पुरुषों ने भी वेद से ही प्रेरणा ली है। 

प्रेरणा के लिए प्रवचन की आवश्यकता नहीं होती। सचिवार, आचार और साचार-विचार की आवश्यकता होती है। एक बच्चा गुड़ बहुत खाता था। उसकी माता उसे लेकर ठाकुर (रामकृष्ण परमहंस) के पास गई और उनसे निवेदन किया कि बालक को गुड़ न खाने का आदेश दें। ठाकुर ने महिला को एक मास बाद आने को कहा। 

महिला एक मास बाद फिर गई। ठाकुर ने बच्चे को समझाया। वह गुड़ न खाने के लिए मान गया। महिला ने ठाकुर से पूछा - आपने इतने दिन बाद उसे गुड़ न खाने का आदेश क्यों दिया। पहले भी समझा सकते थे। ठाकुर ने कहा - पहले मैं भी गुड़ खाता था। गुड़ छोड़ कर देखा तभी तो मैं आशीवार्द देने का अधिकारी बना। 

दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाएं। उनसे प्रेरणा ली। प्रेरणा लेने की सहज कामना ने ही उनको यह रास्ता सुझाया। गीता में कहा गया है -
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गविहस्तिनि । 
शुनि चैव श्वयाके च पण्डिताः समदर्शिनः ।। 

समदर्शी का अर्थ यह भी होता है कि उनसे सभी से प्रेरणा लेकर जीवन को सँवारा जा सकता है। वेद ने कहा - ‘मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि समीक्षामहे’। मित्र की दृष्टि से हम सभी को देखें। तप का मार्ग अपनाने के लिए वेद का अतप्रतनूर न तदामो अश्नुते। न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवाः अर्थात् श्रम करके थके बिना देवता सुखी नहीं बनते। जैसी श्रद्धा वैसा व्यक्तित्व। 

इन्द्र इच्चरतः सखा: देवराज इन्द्र उन्हीं का सखा होता है जो साचार-विचार और सविचार आचार का मार्ग अपनाता है। केवलाद्यो भवति केवलादी अर्थात् अकेला खाने वाला केवल पाप खाता है। धर्म की कमाई को सौ व्यक्तियों के साथ मिलकर खाएँ। उद्यानं ते नावयानम् अर्थात् उन्नति करना ही धर्म है। 

स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस से प्रेरणा लेकर संसार में भारतीय जीवन दृष्टि का तहलका मचा दिया। स्वाध्याय को मनु ने परम ज्योति कहा है। स्वाध्याय से प्रेरणा मिलती है। मनु के अनुसार स्वाध्याय करके ऋषियों की अर्चना करें। भारत त्यागभूमि है। अथर्ववेद की उक्ति है - सौ हाथ वाला होकर अर्जित कर और हजार हाथ वाला होकर उसे बाँट दे। पर, प्रेरणा लेने की उत्कट चाह हो तभी प्रेरणा ली जा सकती है। 

स्वामी दयानन्द ने तो राजदरबार की गायिका से भी प्रेरणा ली। देश की पराधीन, भूखी जनता से भी प्रेरणा ली। भूख और पराधीनता से संग्राम छेड़ दिया। प्रेरणा पुरुषों की संसार में कमी नहीं है। रूसो और वाल्टेयर के लेखों ने फ्रांस में क्रान्ति कर दी। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने वेद की दृष्टि का विश्व में डंका बजा दिया। जो प्रेरणा लेगा वह प्रेरणा दे भी सकेगा।