Sunday, 10 August 2014

अस्मिता का फलितार्थ

संपादकीय (अगस्त २०१४) 
बचपन से मिले संस्कार, शिक्षा और संस्कृति के साथ संसार में कदम रखने वाला व्यक्ति, जब अच्छी-बुरी परिस्थितियों से गुजरता है, तो संसारी अनुभूतियों के साथ मिले अहं से उसका जो व्यक्तित्व बनाता है- वहीँ उसकी अस्मिता कहलाती है I अपने वज़ूद को कायम रखने के प्रयास में उसका अहंकारी हो जाना स्वाभाविक है और इसी के चलते अपने-अपने स्वार्थों के वशीभूत लोग, उसके प्रशंसक और निंदक हो जाते है I वाद-विवाद या बहस की जड़ें अपने-अपने अहं से खुराक लेती रहती हैं I आत्म-गौरव इसका सकारात्मक पक्ष है, तो झूठा अभिमान नकारात्मक पक्ष I सारा संसार इन दोनों पक्षों के बीच पेंडुलम की तरह झूलता रहता है I लोगों की नकारात्मकता की ओर बढ़ती भीड़ ने जीवन- मूल्यों की अस्मिता को खतरे में डाल दिया है I कोई भी दो लोग, पडौसी या देश हों, सभी अपनी-अपनी अस्मिता की दुंदूभी बजाते हुए, स्वयं को सही ठहराने की कोशिश में क्लेश भोगते रहते हैं I दुःख के कई कारणों में अस्मिता की जिद्द भी एक बड़ा कारण है I


     धर्म, जाति, भाषा, प्रान्त या किसी अन्य विषय को अस्मिता का मुद्दा बनाकर राजनीतिबाज़ों और समाज-कंटकों ने अपनी अस्मिता को पुष्ट करते हुए, लोगों को आपस में लड़ाया और इंसानियत की अस्मिता को दागदार बनाया I नारी की निजता यानी अस्मिता से खेलने वाले; चंद सिक्कों से गरीबों / असहायों का ईमान यानी अस्मिता खरीदने वाले; प्रेमी जोड़ों की हत्या में अपने सम्मान यानी अस्मिता ढ़ूढ़ने वाले; नाक या मूंछ के सवाल पर अहंकार याने अस्मिता को संवारने वाले; धर्म के नाम पर श्रद्धालुओं की आत्मियता यानी अस्मिता को भुनाने वाले; व्यक्तित्व के विकास को रोकने में उसके व्यक्तित्व यानी अस्मिता का छिद्रान्वेषण करने वाले और ऐसे ही अनेकानेक कृत्यों से सने लोग, अपनी अस्मिता के व्यामोह में फँसे रहते हैं I यह सभ्य मनुष्य की अवधारणा पर गहरा तमाचा है, जो अपंग सोच को उजागर करता है I 
 

                 मानवीय मूल्यों में प्रेम, सहयोग, त्याग, दया, अहिंसा, अपनत्व, श्रद्धा, सम्मान, शांति और करुणा जैसे तत्त्व होते हैं I समस्त प्राणी, जीवन में अच्छे स्वास्थय के साथ सुख-समृद्धि और शांति के अभिलाषी होते हैं I मानवीय मूल्यों से सराबोर इंसान ही इस अभिलाषा को प्राप्त कर सकता है I अपने दुखों के लिए दूसरों को कोसने की बजाय, यदि वह अपने होने के भान यानी अस्मिता को इंसानियत के रंग में रंग ले, तो फिर द्वेष से उपजी टकराहट स्वत: ही मिट जाएगी I ‘दो’ होने में दिक्कत है और ‘एक’ होने में शिद्दत I भारतीय संस्कृति इन्हीं मूल्यों में रची-बसी रही है और यहीं बोध, उसकी अस्मिता का उजला पक्ष है, जिससे ‘सर्वजन हिताय – सर्वजन सुखाय’ और वसुधैव कुटुम्बकम्’ जैसे वैश्विक सोच के स्वर फ़ूटते हैं I भारत की इस विशाल हृदयता ने वेदनापूर्ण समय की मार को झेलते हुए, अनेक संस्कृतियों को आत्मसात् किया और अपने होने के सबूत के साथ, विश्व को अपनी अस्मिता का परिचय दिया I भारत ने अनेक आक्रमण झेलते हुए भी आक्रामक होने से सदा ही परहेज़ किया, जो विश्व-बंधुत्व की नैसर्गिक समझ है I प्रकृति ने नाना प्रकार की वनस्पति, पहाड़, नदियाँ, खनिज सम्पदा जैसा प्रसाद मानव कल्याण के लिए परोसा है, लेकिन लोगों ने अपनी अस्मिता के गुरूर में प्रकृति की अस्मिता को लूटा है I भारतीय संस्कृति ने इन सभी को पूजकर, अपनी अस्मिता को स्थापित किया है I ज्ञान-विज्ञान, योग और अध्यात्म से दुनिया को परिचित कराकर, भारतीय ऋषि-मुनियों और संत-गुरुओं ने गूढ़तम उपदेशों और ग्रंथों द्वारा लोगों की अस्मिता को सही और सच्ची दिशा दी I भारतीय दर्शन सदैव ही मनुष्य को उत्कृष्टता की ओर ले जाने का हामी रहा है I आत्मा की अमरता और मनुष्यता को अस्मिता का प्राण माना गया है I विरासत में मिले ये ही मानवीय मूल्य, हमारी राष्ट्रीय अस्मिता है I


                  अतीत के अतिरंजित गुणगान से पैदा अहंकार, अस्मिता की जड़ता को बढ़ाता है I बदलते समय और परिवेश के साथ उभरती अति लोलुप अस्मिताएँ, किस दिशा में ले जा रही हैं – यह जग-जाहिर होता जा रहा है I दुनिया में हर-पल कहीं न कहीं इंसानियत का जनाज़ा निकलते देखकर भी, यदि अस्मिता को परिष्कृत नहीं किया गया और शाश्वत मूल्यों को जीवन में नहीं उतारा गया तो नकारात्मकता के साथ भुगतते ही रहेंगे, ऐसी- अस्मिता का फलितार्थ


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