Saturday, 7 October 2017

भगिनी के समर्पित जीवन को नमन

Kendra Bharati : October 2017
ग्वालियर में भगिनी निवेदिता की आदम मूर्ति लगी है] जिस पर वाक्य लिखा है - "निवेददितात्मा विचिकीर्शतोऽहम्" अर्थात् मैं निवेदित (समर्पित) आत्मा कुछ करने की चाह रखता हूँ। निवेदिता का जन्म आयरलैंड में हुआ। मूल नाम मार्गरेट था। स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्होंने भारत में आकर पूरी तरह से समर्पित भाव से मानवता की सेवा का व्रत ले लिया।

भारत अंग्रेजों के अधीन था। भारतीय उनके अत्याचारों से संत्रस्त थे। अंग्रेजों ने भारत को बुरी तरह से लूटा। इससे सामान्य व्यक्ति दीन-हीन का जीवन जीने लगे। निराशा ने उनको बुरी तरह से तोड़ दिया। स्वामी विवेकानन्द ने भारतीयों की इस स्थिति को देखा और सभी लोगों से दीन-हीन भारतीयों की सेवा करने की अपील की।

विवेकानन्द मानते थे कि हिन्दू जीवन पद्धति सारे संसार को श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा देने में सक्षम है। इसलिए उसकी रक्षा होनी चाहिए। भारत आध्यात्मिक देश है। आध्यात्मिक जीवन मूल्यों के आधार पर श्रेष्ठ अध्यात्मनिष्ठ व्यक्तियों का निर्माण करके भारत को विश्व के लिए प्रेरणा का विषय बनाया जा सकता है।

भारत अपनी चारित्रिक दीप्ति से विश्वगुरु था और अब भी वह वैभवशाली बनकर विश्व का नेतृत्व कर सकेगा। विवेकानन्द के अनुसार] भारत के गाँवों में ही श्रेष्ठ मानव का निर्माण हो सकता है। इसलिए उन्होंने निवेदिता को प्रेरित किया कि वह ग्रामीण भारत की सेवा करे। निवेदिता ने वैसा ही किया। हिन्दू जीवन पद्धति को समझा। उसके अनुसार जीवन जिया और अन्यों को भी प्रेरित किया।

उन्होंने हिन्दू विद्यालय की स्थापना की और लोगों को शिक्षित किया कि वे स्वयं को हिन्दू कह कर गर्व अनुभव करें। स्वयं को हताश अनुभव न करें। महामारी-बीमारी में निवेदिता ने जन-जन की बड़े अपनत्व के साथ सेवा की। उनकी हिन्दुत्व की इस मान्यता ने महामना पंडति मदनमोहन मालवीय को भी प्रभावित किया। उन्होंने 23 मार्च] 1893 को हिन्दू धर्म में दीक्षा ग्रहण की और मारग्रेट एलिजाबेथ] निवेदिता बन गई।

उनके व्याख्यान के विषय होते थे - भारतीय जीवन मूल्य और जीवन जीने की हिन्दू पद्धति। इन सबके लिए विवेकानन्द ही उनके लिए आदर्श और व्याख्याता थे। ^द मास्टर एज आई सा हिम* उनकी पुस्तक बड़े परिश्रम से लिखी गई पुस्तक है। इससे स्वामी विवेकानन्द को समझने की दृष्टि भी मिलती है। निवेदिता को भारतीयता में ढालने में विवेकानन्द के अतिरिक्त माता शारदा का भी हाथ है।

विदेशी घुसपैठिये के रूप में अंग्रेजों ने भारतीयों के जीवन में हताशा और अकर्मण्यता भर दी थी। भगिनी निवेदिता ने उसको समाप्त करके साफ-सुथरी स्वस्थ जीवन दृष्टि उजागर की। हम सब भारतीय कृतज्ञता के भाव से भगिनी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यह कहने में कतई संकोच अनुभव नहीं करेंगे कि हमारे लिए वह श्रेष्ठ शिक्षिका थीं] जो सोचती उसे करके दिखाती थी।

'आत्मानं विद्धि' भारतीय विचार परम्परा का - सनातन विचार परम्परा का आधार सूत्र है। विदेशी शरीर में भारतीय आत्मा को हमने, उनमें प्रत्यक्ष देखा है। उन्होंने जो सोचा उसे लिखा भी है वह बहुत है। अंग्रेजी में है। सार्ध शताब्दी मानते हुए हम उसे हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में उपलब्ध करा सकें तो यह बड़ी उपलब्धि होगी। निवेदिता की देन और प्रशस्त होगी।