भारत वेदभूमि है, देवभूमि है, योगभूमि है, यज्ञभूमि है, त्यागभूमि है। इसको ऋषि-मुनियों का देश माना जाता है।
इसकी कुल जनसंख्या का आधे से अधिक भाग युवाओं का है। यह गर्व की बात है। भारत के
युवा न केवल भारत की, वरन् संसार की तकदीर बदल सकते हैं, फिर भी जीवन में जो हताशा और अकर्मण्यता व्याप्त हो गई है इससे तत्काल मुक्त
होने की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह का मुक्ति
आन्दोलन चलाया जाना चाहिए। हमारे आदर्श हैं - राम, कृष्ण, अर्जुन, चाणक्य, शिवाजी, महाराणा प्रताप, महात्मा गांधी जैसे इतिहास पुरुष। शंकराचार्य, भगवान् बुद्ध, महावीर स्वामी, गोस्वामी तुलसीदास जैसे लोक नायकों ने भारत को धर्मप्राण और अध्यात्म
प्राण राष्ट्र बनाया है।
भारतवासी धर्म,
अर्थ, काम और मोक्ष - पुरुषार्थ, चतुष्ट्य की साधना करते हैं। देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण से छुटकारा पा लेते हैं। भारत की इस सनातन परम्परा को समझ
कर ही स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि नये अध्यात्मनिष्ठ भारत का निर्माण करना
चाहिए।
स्वामी विवेकानन्द ने यह भी कहा था कि
यदि सर्वश्रेष्ठ मानव का कहीं निर्माण हो सकता है तो भारत के गाँव में ही संभव है।
श्रेष्ठ मानव का विकास ही भारतीय परम्परा में चरम लक्ष्य माना गया है। वेद मानवता
का संविधान है। उसका ध्येय सर्वश्रेष्ठ मानव का विकास ही है।
भारत में मानव की पहचान उसके चरित्र से
होती है। संसार के मनुष्य श्रेष्ठ चरित्र की शिक्षा भारत से ही लेते रहे है -
एतद्देश प्रसूतस्य सकाशादम्रजन्मनः ।
स्वं स्वं चरित्रं
शिक्षेरन् पृथव्यां सर्वमानवाः ।।
भारत का सामर्थ्य भारतवासियों का चरित्र
है। शिवाजी के सेनानायक की सुन्दर पत्नी को शिवाजी को भेंट
स्वरूप प्रस्तुत किया तो वह थर-थर काँप रही थी। शिवाजी ने कहा -
मेरी माता इतनी सुन्दर होती तो मैं भी इतना ही सुन्दर होता। उन्होंने उसे ससम्मान
वापस भेज दिया और अपने सेना नायक से कहा कि मातृजाति का सम्मान करना सीखो।
अब्दुल रहीम खानखाना की पत्नी और उनके
बच्चे मार्ग भटक कर महाराणा प्रताप की सेना के हाथ पड़ गए तो महाराणा प्रताप ने
उनको ससम्मान लौटाया। रूपकृती चन्द्रगुप्त ने मध्य एशिया में बलख को जीत
कर कुतुबमीनार के पास लोहे के लाट के ऊपर अपनी प्रशस्ति अंकित करवाई।
जिसमें वर्णित है- वल्लिकां विजयते ।
कनिष्क और ललितादित्य ने चीन पर विजय
प्राप्त की थी। राजा रघु ने विश्वजीत यज्ञ किया तो अपना सर्वस्व दान कर दिया।
कौत्स को गुरुदक्षिणा चुकाने के लिए उसने कुबेर पर चढ़ाई करने का मानस बनाया। कुबेर
ने उसका राजकोष स्वर्ण से भर दिया। चढ़ाई की आवष्यकता ही नहीं हुई।
दक्षिण के सम्राट राजराजेन्द्र चोल ने अपनी हाथियों की सेना लेकर दर्रा खैबर के
पार अटक में पर्वत खण्ड पर लिखवा दिया था कि कोई भी दस्यु आर्य राष्ट्र की सीमा का उल्लंघन न करे।
औरंगजेब की बेटी सफीयतुन्निसा को उसके शत्रु दुर्गादास ने पुत्री की तरह पाला था और उसे गीता और कुरान की शिक्षा दी थी। हरिसिंह नबुवा ने अंग्रेज सेना नायक की पुत्री का अपहरण कर छह
महीने अपने पास रखा। जब लौटाया तब पुत्री
ने अपने पिता को बताया कि हरिसिंह नलुवा ने उसको पुत्री की तरह प्यार किया है।
कोटा राज्य के राज दरबार में वहाँ के
प्रधानमंत्री ने एक राजपूत सामन्त को अपमानित करके बाहर निकाल दिया। क्रुद्ध
सामन्त ने प्रधानमंत्री के रनिवास से उसकी रानी का अपहरण कर लिया। उसके आवास पर जब
वह जगी तब उससे कहा गया कि वैसे ही आनन्दपूर्वक रहे जैसे अपने पीहर में रहती रही
है। प्रधानमंत्री ने राज्य भर में सब जगह उसकी खोज करवा ली। एक दिन राज दरबार में
सामन्त मूछें तान कर बैठा था तो प्रधानमंत्री ने पूछा - क्या मंशा है ? सामन्त ने
उत्तर दिया - रानी सुरक्षित है - उसे लेने घोड़ी पर बैठकर मेरे द्वार पर आना होगा।
प्रधानमंत्री ने वैसा ही किया। अपने व्यवहार के लिए क्षमा भी माँगी।
सिक्ख राजा रणजीतसिंह के सिर पर एक कन्या ने गोकण से पत्थर फेंक कर दे मारा। खून बहने लगा।
उन्होंने कन्या से पूछा - यह क्या किया ? उसने कहा - महाराज ! पत्थर पेड़ पर फेंका था - चूक हो जाने से आपके सिर में
लग गया क्षमा करें।
महाराज ने पूछा - यदि पत्थर ठिकाने पर
लगता तो क्या होता ? कन्या ने कहा - आम का पेड़ मुझे फल देता। महाराज ने कहा तो तुम्हारा राजा
आम के पेड़ से भी गया-बीता तो नहीं हो सकता। उन्होंने कन्या को बहुत सारे आम दिये
और सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के सैनिकों ने
अंग्रेज फौजियों के परिवार के सदस्यों को घेर लिया था। रानी ने उन सबको मुक्त करा
दिया। भारतवासियों का चरित्र और व्यवहार सामने वाले के संगत-असंगत व्यवहार को
देखकर निर्धारित नहीं होता। हमारा चरित्र हमारी पुरुषार्थ साधना का अंग
है।
1961 के
भारत-पाक युद्ध में हमारे सेनानायक जनरल माणेकशा ने पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों से आत्मसमर्पण करवाया और
बांग्लादेश का उदय हुआ। मेजर जनरल जगजीतसिंह अरोड़ा के समक्ष पाक सेना नायकों को
आत्मसमर्पण करना था। उन्होंने अपने हथियार डाल दिए। प्रधान सेनानायक अपने फीते
उतारने लगा तब उसे चक्कर आ गए। हमारे मेजर जनरल जगजीतसिंह ने दौड़कर पाक सेनाध्यक्ष
को बाहों में भर लिया। दोनों ने देहरादून के सैनिक स्कूल में प्रशिक्षण लिया था। एक हमारा सेनाध्यक्ष था, तो दूसरा पाकिस्तान का। अपने शत्रु देश के सेनानायक को भारत का सेना नायक ही बाहों में भर
सकता है।
भारत के सामर्थ्य की कहानियों पर बहुत
बड़ा ग्रन्थ लिखा जा सकता है। हम विश्वस करते रहे कि पुरुषार्थ हमारा दायाँ हाथ है और विजय बाएँ हाथ का खेल -