संपादकीय
भारत में वर्षा ऋतु में हम देवताओं को सुला देते है और देवोत्थानी एकादशी को उनको जगाते है | वेद की उक्ति है - न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवा: अर्थात् परिश्रम करके थके नहीं, तब तक देवता सखा नहीं बनते | देवताओं को सखा बनाकर रहने की ललक वेदमंत्रों में व्यक्त हुई है - देवानां सख्यम् उपसेदु: |
देवों को जगाना है तो शक्ति तो प्राप्त करनी होगी | आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नौ दिन तक शक्ति साधना की जाती है | दसवा दिन विजयलाभ का होता है - विजयादशमी |
शक्ति का अर्थ है- कर सकने का भाव | संस्कृत भाषा की शक् धातु से क्तिन् प्रत्ययपूर्वक यह शब्द बनता है | मन की तीन वृत्तियाँ होती है - इच्छा, ज्ञान और क्रिया | इसके अनुसार एक शक्ति त्रिधा विभक्त हो जाती है - इच्छा करने की शक्ति, ज्ञान प्राप्त करने की शक्ति और क्रिया (कर्म) करने की शक्ति | दुर्गासप्तशती में शक्ति के स्वरूप की व्याख्या की गई है |
मनुष्य अपने स्वभाव को भूल जाए तब शक्तिहीन होता है | अपने स्वभाव को भूल जाने वाला अर्जुन अनुभव कर रहा था कि वह इतना शक्तिहीन हो गया है कि उसके हाथ से गाण्डीव तक खिसकता चला जा रहा है | कृष्ण ने उसको प्रबोधित करके स्मरण कराया कि वह क्षत्रिय है और अन्याय के विरुद्ध युद्ध करना ही उसका धर्म है तो वह कह उठता है - नष्टो मोह: स्मृतिर्लब्धा |
श्राद्ध में श्रद्दापूर्वक पुरखों का स्मरण किया गया और उनके पराक्रम की गाथा आत्मविश्वास पैदा करेगी - इस विश्वास के साथ श्राद्ध कर्म किया गया, तब नवरात्र के प्रथम दिन अपने कुलगुरु की प्रेरणा से व्रत धारण किया -
अग्ने व्रतपते ! व्रतम् अहं चरिष्यामि |
यत् शक्यं तत् मे राध्यताम् |
इदम् अहम् अनृतात् सत्यम् उपैमि |
अर्थात् हे व्रतपति अग्नि ! मैं व्रत करूँगा ! जो मैं कर सकता हूँ उसको करने की शक्ति मुझे प्रदान करो | इस तरह मैं अनृत से सत्य की जाता हूँ |
संकल्प करके साधक घटस्थापन करता है - घर के ढकने, बिजौरे में वह जौ बो देता है | नौ दिन तक अपने संकल्प का जल वह बिजौरे में छोड़ता है जिससे जौ अंकुरित हो जाते है और ज्वारे बन जाते है | साधक बीज से ज्वारे के विकास की प्रक्रिया को प्रत्यक्षत: देखता है | इससे आत्मविश्वास और सुदृढ़ हो जाता है | अपने इष्टदेव में आस्था बढ़ जाती है |
साधक नौ दिन तक उपवास करता है अथवा एक समय पर भोजन करता है | नित्य दुर्गासप्तशती, श्रीमद्भगवद्गीता अथवा रामचरितमानस का पाठ करता है | दुर्विचारों और दुष्प्रवृत्तियों से बचता है | चित्त वृत्ति के निरोध के लिए योग साधना करता है | वह नित्य यज्ञ भी करता है | यज्ञ का अर्थ है- श्रेष्ठ कर्म |
यज्ञ में आहुति के साथ कहा जाता है- इदं अग्नये न मम यह सर्व प्रकारेण समर्पण की भाषा है -
तेरा तुझको सौंपते का लागत है मोहि |
नौ दिन तक साधना से शरीर और मन को पवित्र करने के बाद दशमी को साधक विजयोत्सव मनाता है | वेद की उक्ति है - वयं जयेम त्वा युजा अर्थात् प्रभो हम तुम्हारा सायुज्य पाकर विजयी हों |
शक्ति-साधना वस्तुत: विजय-साधना ही है | वेद में साधक की उक्ति है कि अपने सामर्थ्य से जो कुछ मैं कर सकता हूँ , वह न कर पाऊँ तो मेरी दसों अंगुलियाँ गलकर झड़ जाए | भारत कर्मभूमि है | इसमें कर्म के प्रति इतनी उत्कटता वेद के आदेश से ही उत्पन्न हुई है -
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीवित् शतं समाः |
शक्ति साधना के लिए संकल्पित होकर हम गाएँ -
शक्ति हो आराध्य फिर-फिर
शक्ति का संधान फिर-फिर
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