जीवन के समस्त रोग-शोक शुचिता और ज्ञान के अभाव में ही पनपते है | आनन्दित जीवन के लिए आन्तरिक
और बाह्य दोनों ही शुचिता जरुरी होती है, परन्तु आन्तरिक शुचिता अधिक महत्वपूर्ण है | सारा खेल अपने मन का है |
यदि अपना मन स्वस्थ है, तो शरीर भी स्वाभाविक तौर पर स्वस्थ ही रहेगा | मन की शुचिता से ही समस्त प्रकार की स्वच्छता संभव है | प्राय: बाह्य स्वच्छता पर तो ध्यान दिया जाता है, लेकिन भीतरी स्वच्छता को भूला दिया जाता है | हर कार्य में हमारी इच्छा की भूमिका प्रबल होती है | बिना इच्छा के किया गया कार्य सफल भी नहीं होता | यदि इच्छा में शुचिता है तो सभी कार्य गुणवत्ता के साथ सम्पन्न होंगे | इच्छा की शुद्धता जीवन को उत्कृष्ट बनाती है | सर्व स्वच्छता की अवधारणा में सभी प्रकार की स्वच्छता समाहित है |
सबसे पहले अच्छे स्वास्थ्य की दरकार होती है | अपने खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार यानी जीवनशैली में शुद्धता न हो तो, शरीर का स्वास्थ्य अनेक रोगों से ग्रसित हो जाता है | घर और बाहर यदि गन्दगी ने डेरा जमा रखा है तो फिर, न मन स्वस्थ होगा न तन | हमारा शरीर भी किसी कचरे-घर से कम नहीं है | पल-प्रतिपल इसमें भी कचरा यानी विजातीय तत्त्व इकट्ठे होते रहते हैं | प्रकृति ने इनके निष्कासन की माकूल व्यवस्था कर रखी है | हम स्वयं ही प्रकृति के विरुद्ध जाकर अपने भीतर कचरा ठूंसते रहते हैं | शरीर और मन में ठूँसा हुआ कचरा, यदि नहीं निकाला जाता है तो इससे पनपा हुआ विष जीवन को मृत्यु के कगार पर पहुंचा देता है | स्वच्छता का महत्व स्वयं की जागरूकता पर निर्भर करता है | सभी प्रकार का प्रदूषण, जीवन के हर क्षेत्र में घातक है | हमारा मन यदि शुचिता से भरा हो, तो शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि जीवन से सरोकार रखने वाली हर विधा स्वस्थ रहेगी | भारतीय संस्कृति और संस्कारों में शुचिता को अत्यंत महत्व दिया गया है | शुचिता के अभाव में पूरा जीवन पंगु हो जाता है | सभी बुराइयों की जड़ में विचारों की कलुषितता ही होती है |
व्यक्तिगत स्वच्छता से लेकर पूरे परिवार, पास-पडौस और समाज में शुचिता का महत्व है | हमारे आपसी संबंधों की रसमय दीर्घता, मन की शुचिता पर टिकी होती है | ईर्ष्या-द्वेष, लोभ, क्रोध, अहंकार आदि से ग्रसित व्यक्ति स्वयं, परिवार और समाज के लिए कभी हितकारी नहीं होता | यह सब उसके मन की शुचिता की अपूर्णता को दर्शाता है | आपसी प्रेम, करुणा, संवेदनशीलता,सहयोग आदि सद् गुणों का प्रादुर्भाव मन की शुचिता पर निर्भर करता है | स्वस्थ, सुखी और सम्पन्न घर-परिवार-समाज के लिए सकारात्मक बोध का होना जरूरी है, जो आपसी व्यक्तिश: मन की शुचिता से ही संभव है | पाश्चात्य भौतिक संस्कृति से ग्रसित होकर, अपनी सर्वहिताय संस्कृति और पावन संस्कारों से छिटकते जाने का ही नतीज़ा है- नकारात्मक सोच और कुकृत्यों का विस्तार | नकारात्मकता गन्दगी है और सकारात्मकता स्वच्छता |आसपास का कूड़ा-करकट स्वत: ही हटता रहेगा, यदि मन स्वच्छता की इच्छा से लबरेज हो | विचारों की शुचिता से ही व्यक्ति और समाज का विकास होता है |
शिक्षा, व्यापार, मनोरंजन, राजनीति, धर्म-कर्म, समाज आदि सभी क्षेत्रों की गन्दगी को मिटाने के लिए मन की स्वच्छता ही एकमात्र विकल्प है | इस ओर अधिक से अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है | मन की शुचिता में होने वाली गिरावट से, मन रोगी होता हुआ अनैतिकता का मार्ग पकड़ लेता है | इससे घूसखोरी, मिलावट, बलात्कार, हिंसा, धोखाधड़ी, लूट-खसोट, वैमनस्यता जैसे अनेक गंदे आचरण पनपते है, जो मन की शुचिता से ही हट सकते हैं | उजले दिखने और होने में बहुत अंतर है | उजला होकर ही सर्व-स्वच्छता को पाया जा सकता है | बाहर की तथाकथित गन्दगी से तो केवल शरीर ही रोगी बनता है, लेकिन मन की गन्दगी से तो मानवता हर मोड़ पर, पल-पल मरती रहती है | राष्ट्रहित सर्वोपरि की भावना, गंदे और कुत्सित विचारों से आहत होती रहती है |
यदि हमें सचमुच स्वच्छता की दरकार महसूस होती है, तो मात्र उजले-उजले दिखावों से बचते हुए, सभी प्रकार की गन्दगी को मिटाने के लिए, अपने प्राण-पान से स्वयं में ही उगानी होगी - मन की शुचिता
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