धर्मो रक्षति रक्षितः धर्म की रक्षा करने पर धर्म हमारी रक्षा करता है। धर्म की रक्षा करने का काम देश के युवा करते हैं। सौभाग्य से भारत की 61 प्रतिशत आबादी युवाओं की है। इस तरह भारत युवा देश है।
युवा शब्द यु मिश्रणे-अपमिश्रणणे धातु से बना है, जिसका अर्थ है वह, जो जुड़ता है और अलग हो जाता है। युवा जब किसी काम को करने का दायित्व हाथ में लेता है तो सब कामों का भार एक साथ खड़ा नहीं करता। वह एक जिम्मेदारी का सामना करता है और सफलता प्राप्त करता है – attach to one, detach from every one. वह एक एक करके सभी दायित्वों को निभाता हुआ सभी में सफलता प्राप्त कर लेता है। इसलिए उसे युवा कहा जाता है।
वैदिक राष्ट्रीय गति (यजु. २२ /२२) में जयशील, सभासद, रधारो ही, युवा पुत्र हों यजमान के - यह कामना की गई है - जिष्णू स्थेष्टा सभयो युवा अस्य यजमानस्य वीरो जायताम्। राष्ट्र को युवा शक्ति ही चलाती है। वृद्ध मार्गदर्शन का काम करते हैं। संसद भवन के सामने लिखा है - न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः, वृद्धा न तेयेन प्रवदन्ति धर्मम्। सभा में बैठने योग्य हो वही सभ्य या सभेय होते है -
स-भा = प्रकाश सहित।
युवा शब्द का पर्यायवाची शब्द तरुण है] जिसका अर्थ है - तैर कर पार कर जाने वाला - संसार की सभी समस्याओं का समाधान खोज कर वह तैर कर पार कर जाता है। वेद का एक मंत्र है -
अश्मन्वती रीयते संरबध्यम्-उत्तिष्ठत] प्रतरत सखायः।
पथरीली नदी बह रही है। उसे पार करना बड़ा कठिन है। समारम्भ करो - उत्सव मनाओ। जितनी बड़ी चुनौती है उतने ही दृढ़ संकल्प युक्त बनना होगा। समुद्र पार करने की चुनौती मिली तो हनुमान् ने कनकभूधराकार शरीरा होकर चुनौती को स्वीकार किया था।
जल से भरी नदी को तो कोई भी व्यक्ति पार कर सकता है तैर कर। पर] पथरीली नदी को कैसे पार किया जाय। इस कार्य को संभव बनाने के लिए कहा गया है - उठो और हे सखाओ ! पार कर जाओ। स्पष्ट है कि बड़ी समस्या को] अकेले न सुलझा सको तो कई सखा मिलकर पार कर जाओ। जिनकी इन्द्रियों के कार्यकलाप एक जैसे हों वे सखा (स-खा) कहलाते है - समानानि खानि येशां ते।
तैरने का कार्य अकेला करे या सखाओं के साथ मिल एक साथ तरुण कहा जायगा। स्वामी विवेकानन्द ने भारत के तरुणों को जगाने के लिए कहा था - प्राण वायु का एक कण अनेक प्राणियों को जीवन दे सकता है] प्रकाश की एक किरण सर्वत्र प्रकाश भर सकती है। तुम तो प्राणमय ज्याति हो और ज्योतिर्मय प्राण - क्या नहीं कर सकते। उनका यह वाक्य मुर्दों में भी प्राण फूंक सकता है।
भारत अध्यात्मनिनिष्ठ राष्ट्र है। युवा शक्ति को अनुशासित और संकल्पित होकर राष्ट्र के इस स्वरूप को प्रकट करना चाहिए। पौष्टिक आहार न मिलने से बच्चे बड़े कमजोर होते हैं। गरीबी-साधन विपन्नता सबसे बड़ी बीमारी है। अंकुरित धान्य और जवारे खाकर शरीर को मजबूत बनाया जा सकता है। पुरानी उक्ति है - शरीर माद्यं खलु धर्म साधनम्। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। जैसा खाये अन्न वैसा होये मन। युवक हितभुक्, मितभुक् और अमृतभुक् बने। अमृतभुक् ईमानदारी की कमाई खाता है।
परिवार में युवक को अनुशासित होने का अवसर मिलता है। यदि दुर्भाग्य से ऐसा परिवार मिलने की स्थिति न हो तो पास-पड़ोस के सात्त्विक परिवार में संपर्क बढ़ा कर स्वयं को अनुशासित कर ले। हताशा और अकर्मण्यता से बचें। सतत् उत्साह उल्लासपूर्वक जीवन जीने का अभ्यास करें। सच्चरित्र बन कर युग का मार्गदर्शन करें।