Friday, 4 December 2015

एक जीवन एक ध्येय

         यह वर्ष विवेकानन्द केन्द्र के लिए एक अति विशिष्ट वर्ष है। यह माननीय श्री एकनाथजी रानडे का जन्म शताब्दी वर्ष है। सम्पूर्ण राष्ट्र को प्रेरित करने वाले वे प्रमुख संगठक थे और सभी के सहयोग से उन्होंने एक कीर्तिमान समय में कन्याकुमारी में, समुद्र के मध्य-स्थित चट्टान पर, स्वामी विवेकानन्द के एक विशाल स्मारक का निर्माण किया। इस स्मारक के स्वाभाविक परिणामस्वरूप उन्होंने विवेकानन्द केन्द्रकी स्थापना की जो आज इस देश में 813 स्थानों पर कार्यरत है। उनके जीवन का सम्पूर्ण मंत्र एक जीवन - एक ध्येयथा अतः इसे शताब्दी समारोह के केन्द्रीय विषय के रूप में चयनित किया गया है। आज हमारा देश एक महत्वपूर्ण उड़ान भरने हेतु तत्पर है, ऐसे समय में हममें से प्रत्येक को इस कार्य में योगदान देना होगा। प्रत्येक क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए हमें संघर्ष करना होगा, हम जो कुछ करें, वह हमारे देश के विकास के लिए हमारा योगदान होना चाहिए और इसके लिए मंत्र है - एक जीवन एक ध्येय। यह आलेख एकनाथजी के शब्दों में, उनके एक व्याख्यान में से ही है।

मानव-जीवन, वस्तुतः मानव-नियति का लक्ष्य सभी के लिए समान है। प्रत्येक व्यक्ति, आज नहीं तो कल अपने जीवन के उच्चतर स्तर के अनुसार उत्कृष्टता के लिए इस आकांक्षा का प्रारम्भ कर देता है। अतः ईश्वर तक पहुँचने के अतिरिक्त अन्य कोई भी मानव-नियति कैसे हो सकती है? आपकी ईश्वर की अवधारणा भिन्न हो सकती है। आप उसे ईश्वर नाम से भी पुकारना न चाहें ! व्यक्ति उसे सम्पूर्ण अथवा ब्रह्म कहना चाहे, आप चाहे जो नाम चुनें परन्तु अन्ततः इससे यही प्रतीत होता है कि आप सम्पूर्ण की अपनी अवधारणा को वह नाम दे रहे हैं। इसलिए जब हम किसी सम्पूर्ण का वर्णन करना चाहें तो उसे हम दैविक कह कर पुकारते हैं। अतः देवत्व ही लक्ष्य है। यह निःसन्देह है। आप कुछ पाना चाहते हैं परन्तु ज्योंहि आप वहाँ तक पहुँच जाते हैं तो वहीं रुक नहीं जाते। तब आप देखते हैं कि वह पर्याप्त नहीं है। आपको आगे जाना चाहिए। आप कहाँ जाएंगे। अन्त में आपको सम्पूर्णता, दैवत्व की ओर जाना ही होगा।

अपने सामान्य जीवन में भी हम देखते हैं कि हम आगे बढ़ रहे हैं। हमें संतोष होता है। अरे ! तुमने प्रगति कर ली है। पर अभी भी हम इसे अपर्याप्त मानते हैं। आप एक अच्छे गायक हो सकते हैं। गायन-विज्ञान के अनुसार आप श्रेष्ठ गायक हो सकते हैं। दूसरों की तुलना में आप प्रवीण हैं। अन्य लोग इससे ईर्ष्या करते हों परन्तु जब आप आत्मपरीक्षण करते हैं तो आप संतुष्ट नहीं होते। आप अनुभव करते हैं कि ‘‘प्रवीणता तो बिल्कुल सही है परन्तु बहुत कुछ अभी और सीखना है। मैं तो अभी भी सीढ़ी के नीचले पायदान पर हूँ, मुझे अभी भी ऊपर चढ़ना है।’’ परन्तु उस स्तर तक पहुँचने पर भी आप प्रसन्न नहीं होते। आप और अधिक के लिए प्रयत्न करते हैं। आपने अत्यधिक कुशल व्यक्ति देखे हों। आप उनमें अधिक अनुरक्त हो गए हों। फिर भी जब आप उनसे साक्षात्कार करेंगे तो वे कहेंगे, ‘‘हमने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह कुछ भी नहीं है। ज्ञान तो असीम है।’’ अतः वह आगे बढ़ने का प्रयत्न करता है। आप जीवन के किसी भी स्तर पर किसी भी व्यक्ति को देखिए, वह हमेशा आगे की ओर देखता मिलेगा वह सम्पूर्ण के साथ एकाकार हो जाने अथवा देवत्व के साथ एकत्व प्राप्त करने से पूर्व नहीं रुकेगा।

यदि हमारी अंतिम नियति यही है तो जीवन को इस प्रकार नियोजित क्यों नहीं करते कि हम कम से कम समय में वहाँ तक पहुँच जायें? वहाँ तक पहुँचने का जो भी मूल्य चुकाना हो, मैं उसे चुकाऊँगा। पूरा मूल्य चुका करके भी मैं अपनी वांछित वस्तु अवश्य ही प्राप्त करूँगा। इसे ही उद्देश्यपूर्ण जीवन कहते हैं। यदि व्यक्ति वहप्राप्त कर लेता है जिसके लिए जिया या मरा जा सके तब वह जीवन, उद्देश्य पूर्ण बन जाता है। जब आप किसी विशेष दिशा में जाना चाहें तो आप उस दिशा में आगे बढ़ जाते हैं और उस विशेष दिशा में जाने के प्रयास में यदि कोई बाधा या संकट आ जाता है और आपको यदि मृत्यु का सामना करना पड़ जाए तो भी आप बलिदान होने की परवाह नहीं करते क्योंकि वह कुछ ऐसा है जिसके लिए जिया जा सकता हो और मरा जा सकता हो। उद्देश्यपूर्ण जीवन इस प्रकार प्रारम्भ होता है। अतः इस सन्दर्भ में हमें समझना पड़ेगा और हमें जीवन का मास्टर प्लानबनाना पड़ेगा।

‘‘मेरे जीवन की सार्थकता क्या है ? वह क्या है जिसे मैं प्राप्त करना चाहता हूँ? वह क्या है जिसका मैं योगदान देना चाहता हूँ ? उसी के लिए मुझे प्राप्त समस्त उपकरणों और जो कुछ मुझे प्राप्य है उसे प्रयुक्त करना पड़ेगा। वह क्या है जिसके लिए मुझे अपने समय का प्रत्येक क्षण, अपनी ऊर्जा का प्रत्येक औंस प्रयुक्त करना पड़ेगा ? सम्पूर्ण जीवन का एक उद्देश्य है और मेरा अस्तित्व एक उद्देश्यपूर्ण अस्तित्व होना ही चाहिए। मेरा अस्तित्व एक-एक क्षण का नहीं होना चाहिए।’’ अनेक सड़केंअनेक गलियाँअनेक मार्ग और अनेक कार्य उपलब्ध हैं। आपको एक का ही चयन करना है। जब मैं कहता हूँ कि केवल एक का ही चयन करना है, तो मैं कहता हूँ शेष सभी को अस्वीकृत करना है। ऐसा नहीं है - वह अच्छा है और वह भी बुरा नहीं है।इस प्रकार का विचार आपको कभी भी उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने नहीं देगा। आपको उसका चयन करना है जो इस जीवन के लिए सार्थक है। इसलिए मैं कहता हूँ, ‘एक जीवन एक ध्येय।

आपको अपने मार्ग का स्वयं चयन करना है। जब आप एक बार अपने मार्ग का चयन कर लेते हैं तो अन्य सभी मार्ग - चाहे वे कितने ही अच्छे क्यों न हों - परन्तु वे इस जीवन में संबद्ध नहीं हैं। मैं हज़ारों चीज़े गिना सकता हूँ जो अच्छी हैं। क्या आप वे सभी हज़ारों चीज़े करेंगे ? आप ऐसा नहीं कर सकते। आपका जीवन अत्यन्त छोटा है। जीवन-काल इतना छोटा है कि आप इनमें से दो कार्य करने का भी सोच नहीं सकते। आप एक कार्य भी विधिवत नहीं कर सकते। परन्तु दो, तीन अथवा पाँच कार्यों को करने का सोचने का तो प्रश्न ही नहीं उठता; क्योंकि जीवन अल्प है। अतः जीवन के अल्प समय को देखते हुए, ‘मुझे कौनसा मार्ग चुनना हैयह सोचने में समय बर्बाद नहीं कर सकते। कभी-कभी लोग कहते हैं, ‘‘अच्छा, मुझे ही निर्णय लेना होगा कि मुझे क्या करना है। मैं सोचूँगा। सर्वप्रथम इस संबंध में ज्ञान प्राप्त करूँगा। मैं अध्ययन करूँगा और जब अंत में मुझे पता लग जाएगा कि तुलनात्मक दृष्टि से यह मार्ग अच्छा है तो फिर मैं उस मार्ग का चयन कर लूँगा।’’

क्या कोई भी व्यक्ति सभी मार्गों की जाँच कर सकता है ? जीवन व्यर्थ हो जायेगा। अतः जीवन का प्रातःकाल में ही उसे निर्णय करना ही होगा। अन्यथा अपने जीवन के मध्याह्न तक वह दो या सैकड़ों विचारों में ही लगा रहेगा। अपराह्न अथवा जीवन के संध्याकाल में निर्णय लेने का कोई लाभ नहीं होगा। अपने जीवन मार्ग का निर्णय जीवन के प्रातःकाल में ही कर लीजिए ताकि उस उपलब्धि को प्राप्त करने हेतु आपको पर्याप्त समय मिल सके। अतः जीवन अल्प हैइस कठोर वास्तविकता के सन्दर्भ में, ज्योंहि आप वयस्क हो जाएँ; आप चिंतन, आत्म निरीक्षण करें, अपने भीतर देखें, अपने भूतकाल पर विचार करें, अपने उपलब्ध साधन, अपनी परिस्थिति, अपने द्वारा किये जाने वाले कार्य के बारे में सोचें। ज्यों-ज्यों आप सोचते जाएँगे, आपको अपने जीवन में क्या करना चाहिए, यह अंतर्दृष्टि प्राप्त हो जाएगी और एक बार निर्णय लेने के पश्चात् तो केवल उसकी क्रियान्विति ही शेष रहेगी।

जब आप एक बार निर्णय कर लें, तब एक मन्तव्य की निष्ठा के साथ - इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता कि लोग आपको एक-मार्गीय मन वाला व्यक्ति कहें - कार्य करें। जब तक आप एक-मार्गीय मन वाले व्यक्ति नहीं बनेंगे, आप जीवन में एक भी महान उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सकेंगे। इस प्रकार की मानसिक-स्थिति यह भी कहा जा सकता है, वह भी किया जा सकता है, इसकी भी या उसकी भी कोशिश कर लेनी चाहिए, थोड़ा यह, थोड़ा वह।’’ - जीवन का अल्प-काल इस प्रकार की विलासिता की अनुमति नहीं देता।

परन्तु प्रत्येक बात को ध्यान में रखते हुए आपको यह पता लगाना ही होगा कि क्या आप इसे करने में समर्थ हैं ? क्या आप, अपने आप को सुदृढ़ बनाते हुए वहाँ तक पहुँच सकते है ? यह आपके स्व-मूल्यांकन पर निर्भर करता है और अपनी दैविक सामर्थ्य पर, आपके दृढ़ विश्वास पर निर्भर है। यह अधिकांश में इसी पर निर्भर करता है। यदि व्यक्ति इस विश्वास से परिपूर्ण है तो फिर यह संभव क्यों, नहीं हो सकता ?

यदि एक व्यक्ति इसे कर सकता है तो फिर मैं इसे क्यों नहीं कर सकता ? मैं भी इसे कर सकता हूँ तो मेरे स्व-मूल्यांकन का प्रश्न ही कहाँ उठता है ? यदि यह व्यक्ति इसे कर सकता है, वह व्यक्ति इसे कर सकता है तो मैं एक व्यक्ति ही हूँ, मैं भी उसी प्रजाति का हूँ। मैं उसे करने में समर्थ क्यों नहीं हूँ ? मुझे केवल स्वयं का ही मूल्यांकन करना है। मैं भी एक मानव हूँ। मैं इसे अवश्य ही करूँगा।

यदि ऐसा आत्म विश्वास है तो आपको अपने जीवन के ध्येय का निर्धारण करने हेतु आत्ममूल्यांकन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। देश को जिसकी आवश्यकता है वह कीजिए। तथ्य यह है कि आपने मनुष्य के संभावित देवत्व को समझ लिया है - मनुष्य दैविक ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है - तो आपके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। आपका इसमें विश्वास है तो इसका अर्थ यह है कि आपका स्वयं में विश्वास है। इसका अर्थ है आपका ईश्वर में विश्वास है। ईश्वर में विश्वास रखना और स्वयं में विश्वास रखना एक समान ही है ! मैं ऐसे मनुष्य के बारे में सोच भी नहीं सकती कि जिस व्यक्ति का ईश्वर में विश्वास हो उसका स्वयं में विश्वास न हो। अतः आप सदैव अनुभव करते रहेंगे कि यदि किसी व्यक्ति ने इसे किया है तो मैं भी इसे कर सकता हूँ।अतः इस आत्मविश्वास के साथ व्यक्ति को अपनी जीवन-योजना बनानी चाहिए।

प्रश्न है मैं इसे कैसे कर सकता हूँ ? क्या मैं असफल हो जाऊँगा ?’ अच्छा ! यदि आप असफल हो गए, आप पुनः उत्थान करेंगे ! ऐसा क्या है ? जिसे आप प्रथम प्रयास में प्राप्त नहीं कर सकते। आप इसे दूसरे या तीसरे प्रयास में प्राप्त कर लेंगे। आप दस बार प्रयत्न करेंगे। एक बच्चा, सौ बार गिरता है पर फिर चलने लगता है। अंततः वह चलना ही नहीं दौड़ना भी सीख जाता है। बच्चे के गिरने पर उसकी कोई हँसी नहीं उड़ाता। अतः इस आत्मविश्वास के साथ व्यक्ति को अन्य उच्च बातों के बारे में सोचना चाहिए। इसी आत्मविश्वास के साथ आपको अपने जीवन के लिए योजना बनानी है। तभी योजना आपके लायक होगी। अतः जीवन के मास्टर प्लानके निर्माण के संबंध में, जिसे व्यक्ति को शीघ्रताशीघ्र बना लेना चाहिए ताकि अपने शेष जीवन में वह उसकी क्रियान्विति करता रहे।

                                                                                                                          - निवेदिता रघुनाथ भिड़े

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
विवेकानन्द केन्द्र, कन्याकुमारी

No comments:

Post a Comment