Thursday 2 June 2016

योगभूमि भारत

योग दिवस पर देशभर में सभी विद्यालयों में विशेष कार्यक्रम रखे जाने की तैयारी हो रही है। सरकार स्वयं रुचि ले रह है। योग सम्पूर्ण जीवन दर्शन है। इसलिए एक दिन योग के लिए देने से काम चलने वाला नहीं है। प्रत्येक दिन योग साधना के लिए समर्पित होना चाहिए। सरकार की रुचि को देख कर नागरिकों को भी अपने स्तर पर प्रयत्नशील होना चाहिए।

भारत यज्ञभूमि है - योगभूमि है। योग को श्रीकृष्ण ने कर्म कौशल कहा है - योगः कर्मसु कौशलम्। भारत कर्मभूमि योगनिष्ठा के कारण ही कहलाता है। योग शरीर साधना भी है, प्राण साधना भी और मनः साधना भी। इनकी एकीभूत चेतना बुद्धि में होकर आत्मा से जुड़ती है,  इसलिए योग आत्म-साधना है।
भारत अध्यात्मनिष्ठ राष्ट्र है। अधिगत आत्मनिष्ठ होना योग द्वारा ही संभव है। योग की एकनिष्ठ चेतना ही अन्तः की चित्तवृत्तियों का निरोध है जिसका पतंजलि ने अपने योग दर्शन में उल्लेख किया है - योगनिष्चत्त वृद्धि निरोधः।

महर्शि याज्ञवल्क्य ने अपने स्मृति ग्रन्थ में कहा है -

अयं तु परमो धर्मः यद् योगेनात्मदर्शनम् ।


योग पूर्वक जन-जन में ही नहीं, कण-कण में आत्म दर्शन करना योग द्वारा ही संभव है। वेद में कहा गया था - शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्राः अर्थात् विश्व के अमृत पुत्रो ! सुनो - इस कथन को योग दर्शन ही सार्थक करता है। मनुर्भव जनय दैव्यं जनम् - मनु बनकर अपने भीतर दिव्य जन को जन्म देना योग से ही संभव है।

योग से विश्व-ऐक्य संभव है। व्यक्ति अपने-पराये का भेद त्याग कर,  उदारचरित बन कर वसुधैव कुटुम्बकम् को अनुभूति का विषय बना सकता है।

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।


परिवार में योग की साधना अधिक फलीभूत होती है। परिवार संसार का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है, सबसे बड़ा चिकित्सालय है, सबसे बड़ी संस्कार प्रशिक्षण शाला है। उसमें सभी सदस्यों को अपने दोशों को दूर भगाने का खुला अवसर मिलता है।

युजिर् धातु से बनने वाले सहयोग, संयोग, वियोग, आयोग, नियोग, प्रयोजन, नियोजन आदि का सम्बन्ध परिवारिक जीवन के साथ ही होता है।