Sunday 31 May 2015

श्रम को प्रणाम

संपादकीय मई २०१५

ब्रह्माण्ड का कण-कण गतिमान है | प्रकृति भी अनवरत अपना कार्य कर रही है | शरीर के समस्त अवयव भी चुपचाप अपना धर्म यानी कर्म निभा रहे हैं | हमारा हृदय निरंतर धड़क रहा है | दो धडकनों के बीच का समय ही उसका विश्राम है, बहुत लम्बा यानी स्थायी विश्राम जीवन की विदाई भी है | बिना श्रम के कोई भी सृजन संभव नहीं है | गति में ही जीवन है और इसके लिए मति का श्रमशील बने रहना जरूरी है | जड़ और चेतन के समस्त निखार के पीछे श्रम का ही परिश्रम है | पाषाण युग से लेकर आधुनिक युग की कहानी का महानायक भी श्रम ही है |

श्रम के अभाव में स्वास्थ्य की रक्षा भी संभव नहीं हो पाती | अच्छे स्वास्थ्य के लिए कुछ करना पड़ता है और यह 'करना' ही श्रम है | निठल्ला आदमी भी थोड़ा स्वस्थ और ज़िन्दा, इसलिए है कि उसके शरीर के भीतर स्वप्रेरित प्राकृतिक श्रम चल रहा है | भीतरी श्रम, बाह्य श्रम की मांग करता है | यदि यह तालमेल बाधित हुआ तो शनैः - शनैः भीतरी श्रम रूठने लगता है और शरीर रोगग्रस्त हो जाता है | विचार या सोच भी मानसिक यानी भीतरी श्रम ही है | यदि कृत्य के रूप में इसकी परिणति नहीं हुई, तो फिर सोच भी कुंद हो जाती है | इसलिए सभी प्रकार के परिपाक के लिए श्रम का आपसी सामंजस्य जरूरी है | कोरी कल्पना या सपने मानसिक विलासता तो दे सकते हैं परन्तु उनको साकार करने के लिए श्रम का प्रगटीकरण जरूरी है | कदाचित् श्रमयुक्त विचारशीलता को कर्मयुक्त श्रमशीलता भी मिल जाए, तो स्वस्थ सृजन स्वत: ही हो जाता है | विश्राम, श्रम का सहोदर है | दोनों का संतुलित सहयोग कृतित्व का मूल है | श्रम हो या विश्राम, दोनों ही एक सीमा के बाद एक-दुसरे के प्यासे हो जाते हैं | इनकी प्यास बुझते रहना, अस्तित्व की गरिमा का निर्णायक तथ्य है | अति श्रम या अति विश्राम प्रगति के सौंदर्य को धूमिल कर बैठते है | किसी एक का भी संग्रहित हो जाना, विकास की गति को थामने का कारण बनता है | संग्रह हमारी प्रवृति है, जो दिनोदिन बढ़ती जा रही है | परिग्रह का गतिशील यानी खर्च होते रहना जरूरी है ताकि अहंकार का भारीपन हल्का होता रहे | अपरिग्रह से आदमी स्वस्थ रहता है | परिग्रह में श्रम की थकावट, तो अपरिग्रह में विश्राम की सुखद अनुभूति होती है | वैसे- संग्रह यानी संचय की भी अपनी उपयोगिता होती है | धन, वस्तुएँ, धान्य, जल, विचार, यादें, आवाज़, बिजली, ज्ञान-विज्ञान, ईंधन और कई तरह के पदार्थ आदि का संग्रह संभव है | कुछ संग्रह आपदा में संकटमोचक, तो कुछ धरोहर के रूप में अपना महत्त्व रखते हैं, ये बहुमूल्य हैं |

ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, लोभ, अहंकार, मोह आदि का संचय खुद के लिए सुखदायी हो सकता है, लेकिन यह दूसरों के लिए दुखदायी साबित होता है | यह परिग्रह का पोषक तत्त्व है | प्रेम, करुणा, ममता, दया, मदद आदि जीवन के ऐसे गतिशील घटक हैं, जिनका संचय नहीं होता | इनका निरंतर बहते रहना ही, इनकी प्राणशीलता दर्शाता है | अपरिग्रह जीवन का सौंदर्य है | जो सुन्दर है, उसका परिग्रह यानी बांधे रखना सड़ांध पैदा करता है | बिखरते रहने पर ही वह सुगन्धित है | परिवार, समाज और राष्ट्र के उत्थान में बहाया गया पसीना, सबको विकास की गरिमा से भर देता है | 

श्रम का संग्रह या संचय भी संभव नहीं है, इसलिए संसार इसकी खुशबू से महक रहा है| इसके संग्रह का प्रयास उसे बोथरा बना देता है | इसे सरलता से यूँ समझें - एक आदमी अपने श्रम से एक दिन यानी आठ घंटे में तीन फीट ऊँची, एक फीट चौड़ी और दस फीट लम्बी दीवार बनाता है | अब श्रम के संचय की सोच के साथ यदि उस आदमी को पांच दिन पूर्ण विश्राम के साथ खूब पौष्टिक आहार दिया जाए कि वह छठे दिन कम से कम साठ फीट लम्बी दीवार जरूर बना देगा, तो हकीकत में इस संचय का परिणाम क्या होगा- समझ आ जाएगा | वह मुश्किल से अब पांच फीट लम्बी दीवार ही बना पाएगा ! अति विश्राम, श्रम को पंगु बना देता है | श्रम का परिग्रह कृतित्व का जनक है | उचित विश्राम के साथ श्रम की गहनता व्यक्तित्व और कृतित्व को निखारती है |

श्रम और विश्राम के महत्त्व को समझने वाले, परिग्रह की अति से बचते हुए स्वस्थ, सम्पन्न और सुखी रहकर परिवार, समाज और देश के सर्वांगीण विकास में सहयोगी बनते हैं | भारतीय संस्कृति कर्म प्रधान संस्कृति रही है- कर्म को योग मानते हुए कर्मयोगी बनने का आह्वान करती है और दान में श्रमदान को श्रेष्ठ मानती है | श्रम को तपस्या मानते हुए, इसे पूजा भी माना गया है | श्रम के महत्व को समझते हुए हमारा कृषक और श्रमिक वर्ग विपरीत परिस्थितियों में भी पल-प्रतिपल जुटा ही रहता है...फिर भी, 'श्रम-दिवस' के इस अंतर्राष्ट्रीय अवसर पर , हम करें - श्रम को प्रणाम