Thursday 19 February 2015

विवेक के गुरू

संपादकीय


अपनी आध्यात्मिक धरा-भारतवर्ष में अनेक ऋषि-महात्माओं ने जन्म लेकर, इस देश का मान-सम्मान पूरी दुनिया में बढ़ाया | ज्ञान की गंगा से सराबोर इस देश ने मार्गदर्शन देकर, विश्व-गुरु का दर्ज़ा प्राप्त किया | भारत, भले ही भौतिक संसाधनों में पिछड़ गया, परन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से सदैव शिखर पर रहा | कई लोगों ने निरक्षरता के बावज़ूद, अपने अंत:करण से उठे ज्ञान के साथ समाज को सुख-समृद्धि की राह बताई | वर्ण-व्यवस्था के साथ-साथ, सत्य-अहिंसा के मूल्यों से समाज में समरसता के वे बीज बो दिए, जिसकी आवश्यकता आज की दुनिया को एक कुटुम्ब मानते हुए सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय की कामना की, जिसकी मिसाल अन्य कहीं नहीं मिलती | हमारे वेद-पुराण और अन्य कई ग्रंथों का पन्ना-पन्ना, मानव जीवन की उच्चता के बोध से भरा पड़ा है| एक अकेली 'गीता' को ही समझकर, उस पर चलें तो जीवन धन्य बन जाए |
हमारे मौलिक दर्शन में जब-जब मिलावट और गिरावट आई, तब-तब इस धरा ने समय-समय पर अनेक धर्मरक्षकों और समाज सुधारकों को जन्म देकर, सही दिशा देने का काम किया | व्यष्टि से समष्टि की ओर जाने की राह दिखाई | आत्मा की अमरता, मध्यम मार्ग, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, कण-कण में भगवान, दरिद्र में नारायण दर्शन, संबंधों की रचना-गरिमा आदि मूल्यों से लेकर वनस्पति व सभी जीवों की पूजा और वर्षभर चलने वाले नाना प्रकार के पर्व-त्यौहारों से मनुष्य के जीवन को उमंग-उल्लास से भर दिया | इस अलौकिक संरचना की बूँद-बूँद में प्रकृति नमन के साथ-साथ इंसानियत से ओत-प्रोत भाव भरे पड़े है | जो इन मूल्यों को स्वीकार कर, अपने जीवन में सचमुच उतारता है - दैवत्व वाली जीवनशैली जीता है तो फिर उसके सुख का कोई पार नहीं है | जीवन-मूल्यों से ओत-प्रोत संस्कारित भारत ने हमेशा मानवीयता को संजोया-संवारा है |
इसी कड़ी में रामकृष्ण परमहंस भी, वे महापुरुष हुए- जो एक सामान्य पुरुष से संन्यास के उच्चतम शिखर पर पहुँचे | उनकी साधना और कार्यों का संक्षिप्त परिचय तो इस अंक में देने का प्रयास किया ही है, परन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने नरेन्द्र यानि स्वामी विवेकानन्द जैसे प्रखर बुद्धिमान, तर्कशील, वैज्ञानिक दृष्टि वाले व्यक्ति को अपने सामने नत-मस्तक होने को विवश कर दिया | श्रीरामकृष्ण से प्राप्त ज्ञान और आशीर्वाद से स्वामी विवेकानन्द ने व्यष्टि से समष्टि की ओर कदम बढाए | भारतीय संस्कृति के उच्चतम मूल्यों से पूरे विश्व को परिचित कराया | उन्होंने मनुष्य निर्माण के सन्दर्भ में उन सभी पूर्वाग्रहों को तोड़ा, जो मनुष्य को दीन-हीन, आलसी, निर्बल, निराश और कर्त्तव्यहीन बनाते थे | स्वामीजी ने सोये पड़े भ्रमित युवकों में इस पावन धरा के प्रति श्रद्धा और कर्त्तव्य बोध का संचार किया | इस महान युवा-प्रेरक ने लुंज-पुंज युवाओं में प्रेम, उत्साह, शक्ति, अनुशासन आदि के भाव भरकर, उन्हें देश-भक्ति की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा दी | डेढ़ शताब्दी का वक्त गुज़र गया, परन्तु आज भी हमें विवेकानन्द की सीख की, कहीं अधिक जरुरत है - उनके बिना यह भारत देश अधुरा है | आधुनिक युग के नकारात्मक थपेड़ों से बचने के लिए, विवेकानन्द के बताए मार्ग पर चलाना ही होगा- जीवन को सकारात्मकता से ओतप्रोत करना ही होगा | युवाओं के मसीहा की बताई डगर पर चलना ही होगा |
पाश्चात्य संस्कृति के आगोश में भटकती, आज की युवा पीढ़ी को यदि बचाना है, तो उन्हें अपनी उच्च संस्कृति और संस्कारों की याद दिलाकर, श्रीरामकृष्ण के शिष्य - स्वामी विवेकानन्द के बताए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना होगा, मनुष्य में दिनोंदिन आती गिरावट तभी रोकी जा सकती है, जब हमसब मिलकर स्वामी विवेकानन्द के मनुष्य निर्माण, दरिद्रनारायण की सेवा, नारी उत्थान, उच्च चरित्र, ऊँच-नीच, भेदभाव मिटाने, अन्धविश्वास से छुटकारा, राष्ट्रहित-सर्वोपरि जैसे पथ-प्रदर्शक विचारों को मनसा-वाचा-कर्मणा अपने जीवन में उतारें | स्वामीजी का एक अकेला उद्घोष- उठो ! जागो !! लक्ष्य प्राप्ति तक रुको मत...माँ भारती को शिखर पर ले जाने को काफ़ी है |

वे श्रीरामकृष्ण ही थे, जिन्होंने एकदूसरे को खोजा और इस देश को विवेकानन्द जैसा देशभक्त संन्यासी देकर, हमें कृतार्थ किया | सहज, सरल, विरक्त, ज्ञानी, संन्यासी, ध्यानी, त्यागी और करुणा से भरे श्रीरामकृष्ण परमहंस के बिना, हमें विवेकानन्द मिल पाना कभी संभव नहीं था | ऐसे महान विभूति थे - विवेक के गुरु

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